शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

आचार्य रामसखा नामदेव जी


 हमारी ग्राम गिरा रिमही बघेली के "दुष्यंत" आचार्य रामसखा नामदेव जी को "विश्वनाथ सिंह जूदेव स्मृति पुरस्कार" मिलने पर हार्दिक अभिनंदन सादर बधाई। मै व्यक्तिगत रूप से मैं दादा नामदेव जी के लेखन से प्रभावित हूँ। और उनका प्रशंसक हूँ। उनके विवाद और एजेंडा रहित काव्य शैली का मै कायल हूँ। वे बघेली के उन विरले साहित्यकारों में हैं, जो केवल समाज के लिए लिखते हैं,किसी को खुश करने के लिये नहीं। वे किसी सड़ांध बदबूदार विचारधरा के पोषक और पिछलग्गू नहीं हैं।उनके साहित्य में सामाजिक सरोकार , लोक संस्कृति और अपनी माटी की सोंधी सुगंध है। विंध्य और बघेली को ऐसे महान सपूत पर गर्व है। कोटि कोटि बधाई.

नंगई से नहीं

नंगई      से      नहीं          बड़प्पन     से         नापा।
फेर   तुहूं   अपने    सीना    का   छप्पन  से     नापा।।
य  देस    देखे  बइठ   है राजा  नहुष  के  अच्छे   दिन  पै ,
वाखर मतलब या नहीं तुम बाल्मीक का बिरप्पन से नापा। ।  
                 @ हेमराज हंस -भेड़ा मैहर 
 
 
 

बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

बिक्ख उइ देथें

बिक्ख उइ देथें महिपर मा घोर के। 
औ रहपट जड़ रहे हें हाथ जोर के। । 
हंस 

अब ता सगले पुन्न धरें अपना के हीसा मा।

 अब ता  सगले  पुन्न  धरें अपना  के   हीसा  मा। 
तउ   लजाते  हया   देख   मुँह  आपन   सीसा मा।
 
को   फुर  कहै  बताबै   भाई   देस  के   जनता से 
जबकी  हेन उइ हेमै  बितुते   सत्ता के चालीसा मा। । 
 
उइ  पाखण्डी देस के सूरज काही जुगनू लिख दीन्हिन 
लबरी   पोदी  बाला  वा इतिहास  है  हमरे  हीसा मा। । 
 
सिये सिये अस ओंठ हे भइय्या अमरित परब आजादी के 
लागै  जइसा  आंखर- आंखर  बंद हो  बपुरे  मीसा मा। । 
 
सागर  कै अउकात   नहीं पै   नरबा  खुब अभुआय लगे 
हंस  कहा  थें उइ   अगस्त का  बंद है  हमरे  खीसा मा। ।   
                         हेमराज हंस भेड़ा मइहर  

गाँधी जी अमर हें

अब  अउर  येसे  केतू निकहा सीन चाही। 
उनखर धड़कन नापै का नई मशीन चाही।। 
चश्मा  के  मथरे  अब   काम   न    चली   
उनखर चरित्त द्याखैं  का अब दूरबीन चाही। । 
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 गाँधी  जी  अमर  हें गंगा  के धारा अस। 
देस के माटी  मा जन जन के नारा अस। ।  
गाँधी जी पढ़ाये जइहै सब दिन इस्कूल मा 
भारत के बचपन का गिनती औ पहारा अस। । 
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हम   दयन    नये   साल  कै   बधाई।  
फलाने कहिन तोहइ लाज नहीं आई।
कुटिया के खुटिया का कलेण्डर बदला है 
पै अबहूँ   धरी   ही    टुटही   चारपाई। ।   
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कोऊ अमीरी से ता कोउ गरीबी से दुःखी है। 
कोउ दुसमन से ता कोउ करीबी से दुःखी है। । 
या   दुनिया   मा   सुख   संच  हे रे नहीं  मिलै  
कोउ मियाँ  से ता  कोउ  बीबी  से  दुःखी  है। ।     
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वा भले जीभ दार है पै मकुना मउना है। 
एहिन से ओखे हीसा मा अउना पउना  है। । 
पड़बा है काहे दूबर य बात दिल्ली जाना थी 
दुधारू लोकतंत्र के पडउना  का थम्हाउना है। । 
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मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

नास्तिक का पुरानिक बताऊ थें

उइ बात बड़ी ठोस औ प्रमानिक बताऊ  थें। 
सामाजिक   जहर   का   टानिक   बताऊ थें।। 
जब  जब   राजनीत   का   हांका   परा   थै   
ता फलाने   नास्तिक का  पुरानिक बताऊ थें। । 
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काहू का पिसान से ता काहू का चोकर से चला थै। 
काहू का एक्का से ता काहू  का जोकर से चला थै।।   
वा  महतारी  के  हाथ  कै  रोटी  भला  का जानै 
ज्याखर    रसोई    घर  नोकर    से    चला    थै। ।  

सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

हिन्दी पढ़ डाक्दरी रही

 हिन्दी डाक्दरी पढ़ रही,गदगद मध्यप्रदेस।
पै अंगरेजी  से  लड़ै , हाई कोट  मा  केस।।
चांदी  कै चम्मच करै , पतरी केर दुलार। 
या बरबस्ती देख के , दोनिआ परी उलार।।   

रविवार, 16 अक्तूबर 2022

आयुर्बेद का बाप।

जब सागर का मथा गा ,कढ़े रतन दस चार।
ओहिन मा धन्वन्तरी , मिलें हमी उपहार। 
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दुनिआ भर कै औषधी , रोग बिथा संताप। 
धनबन्तरि का सब कहै , आयुर्बेद का बाप। 
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तिली मूंग उर्दा सरा , भा यतरन  झरियार। 
बरा मुगउरा के निता , परी कहाँ से दार। 
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हे लछिमी जू आइये

हे लछिमी जू आइये , साथै सिरि गनेस। 
मोरे भारत देस मा , दालिद बचै  न शेष। 
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जिधना से भृगु जी हनीन  ,श्री हरि जू  के लात। 
लछमी  जू  रिसिआय के ,  चली  गयीं गुजरात। । 
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दियना  कहिस  अगस्त से,  दादा  राम लोहार। 
तुम पी गया समुद्र का ,हम पी ल्याब अधिआर। । 
दीपदान  कै लालसा , तीरथ का अनुराग।
चित्रकोट कोउ जा रहा कोऊ चला प्रयाग। । 
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धरमराज  कै फड़ सजी ,  चलै जुआं का खेल। 
गाँव  गाँव  मा  झउडि गय , शकुनी बाली बेल। । 
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राबन के भय से लुका , जब से बइठ कुबेर। 
तब से धनी गरीब कै अलग अलग ही खेर। । 
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उल्लू   का  खीसा  भरा ,  छूंछ हंस कै जेब। 
या भोपाल कै चाल  की, दिल्ली का फउरेब। । 
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