हे लछिमी जू आइये , साथै सिरि गनेस।
मोरे भारत देस मा , दालिद बचै न शेष।।
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जिधना से भृगु जी हनीन ,श्री हरि जू के लात।
लछमी जू रिसिआय के , चली गयीं गुजरात। ।
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दियना कहिस अगस्त से, दादा राम लोहार।
तुम पी गया समुद्र का ,हम पी ल्याब अधिआर। ।
दीपदान कै लालसा , तीरथ का अनुराग।
चित्रकोट कोउ जा रहा कोऊ चला प्रयाग। ।
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धरमराज कै फड़ सजी , चलै जुआं का खेल।
गाँव गाँव मा झउडि गय , शकुनी बाली बेल। ।
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राबन के भय से लुका , जब से बइठ कुबेर।
तब से धनी गरीब कै अलग अलग ही खेर। ।
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उल्लू का खीसा भरा , छूंछ हंस कै जेब।
या भोपाल कै चाल की, दिल्ली का फउरेब। ।
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