सोमवार, 29 अगस्त 2016

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita धर बरिगा ता बरिगा,हम दमकल देख्‍यान...

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita धर बरिगा ता बरिगा,हम दमकल देख्‍यान...: बघेली मुक्तक  पियासा परा हम, हेन नल क देख्‍यान। उूसर मां बाइत करत,हल क देख्‍यान ॥ आगी लगाय के अब,कहथें फलाने,, धर बरिगा ता बरिगा,हम दमक...

bagheli kavita धर बरिगा ता बरिगा,हम दमकल देख्‍यान॥

बघेली मुक्तक 

पियासा परा हम, हेन नल क देख्‍यान।
उूसर मां बाइत करत,हल क देख्‍यान ॥
आगी लगाय के अब,कहथें फलाने,,
धर बरिगा ता बरिगा,हम दमकल देख्‍यान॥
...............  .......................................
नल तरंग बजाउथें,बजबइया झांझ के।
देश भक्‍ति चढाथी,फलाने का सांझ॥
उनहीं ईमानदार कै,उपाधि दीन गै,
जे आंधर बरदा बेंच दइन काजर आंज के॥
...........................................................
शांती क पाठ लड.इया से पूंछत्‍या है ।
शनीचर क पता अढ़इया से पूंछत्‍या है॥
भोपाल से चला औ,चउपाल मां हेरायगा,
विकास क पता मडइया से पुंछत्‍या है॥

करियारी अस पगहा नही भा ।
फउज मां भरती रोगहा नही भा॥
उनसे जाके कहिद्‌या भूंभर न करैं,
समय काहू का सगहा नही भा॥
.........................................................
भइस अबै बिआन नही,उंइ सोठ खरीदाथें।
लिपिस्‍टिक लगामै क,ओठ खरीदाथें॥
दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र मां,
उंइ एकठे बोतल से, वोट खरीदाथें॥
.......................................................
आपन सहज बघेली आय।
गांव के क्‍वारा कै खेली आय॥
विंध्‍य हबै जेखर अहिबात,
ऋषि अगस्‍त कै चेली आय॥
.......... ..........................................
फलाने कै भंइसी निकहा पल्‍हाथी।
लगथै आँगनवाड़ी कै दरिया वा खाथी॥
गभुआर बहुरिगें धांधर खलाये,
सरकारी योजना ठाढे बिदुराथी॥
.  ........................................
पढ़इया स्‍कूल छूरा लइके अउथें।
हम उनसे पूंच्‍छ्‌यन त कारन बताउथें॥
पढ़ाई के साथ साथ सुरक्षव त जरुरी ही,
आज काल्‍ह गुरुजी चउम्‍ही से पढ़ाउथें॥
..............  ..................................
हम जेही मांन्‍यान कि बहुतै बिजार है।
लागथै भाई वा बरदा गरियार है ॥
जब उनसे पूंछ्‌यन त कहाथे फलाने,
दहकी त दहकी नहि दल का सिगार है॥
..............  ...................................
फूल हमही त जरबा जनाथै।
बिन जंगला केर अरबा जनाथै॥
बहुराष्‍ट्‌ीय कंम्‍पनी क पानी भरा है,
औ देशी मांटी क तलबा जनाथै॥
............  .....................................
घिनहौ क नागा नही कही,
येही बड़प्‍पन मान कहा ।
फलाने कहाथें तुम हमी
महान कहा ॥
जेही बंदेमतरं गामैं मां लाज लागाथी,
उंइ कहा थें हमूं का ,
भारत कै संतान कहा ॥
...............  ...................................
हम दयन नये साल कै बधाई।
फलाने कहिन तोहई लाज नही आई॥
पांव हें जोधइया मां हांथ मां परमानु बम
पै पेट मां बाजाथी भूंख कै शहनाई॥
...............  .....................................
तुहूं अपने हांथ कै चिन्‍हारी देख ल्‍या।
भाई चारा काटैं बाली आरी देख ल्‍या॥
नीक काम करिहा ता वा खूंन मां रही,
गिलहरी के तन केर धारी देख ल्‍या॥
.............  .......................................
हमरेव गांॅव मां हरिश्‍चंद हें।
दिल्‍ली तक उनखर संबंध हें॥
पुलिसवाले गें लेंय परिक्षा,
आज काल्‍ह उंइ जेल मां बन्‍द हें॥
.............  .....................................
उंइ कहा थें हाल चाल ठीक ठाक है।
जब से भगा परोसी तब से फरांक है॥
अब रोज खुई कराथें पट्‌टीदार से,
औ कहाथें हमरिव कि निकही धाक है॥
...............  ...................................
हम फुर कही थें ता कान उनखर बहाथै।
पता नही तन मां धौं कउन रोग रहाथै॥
तन से हें बुद्ध औै मन से बहेलिया,
कोहबर कै पीरा य लोकतंत्र सहाथै॥
............... ...................................
चेतना के देंह का उंइ झुन्‍न न करै।
हांथ जरै जेमा अइसा पुन्‍न न करै॥
इन्‍द्र कै बस्‍यार ही घर के नगीच मां,
‘गउतम'से जाके कहि द्‌या उच्‍छिन्‍न न करैं॥
...............  ........................................
बलफ फियुज होइगा झालर पकड.के।
उंइ हाल चाल पूंछाथें कालर पकड.के॥
सुदामा के चाउर का उंइ का जनैं,
जे बचपन से खेलिन ही डालर पकड. के॥
.................  .......................................
उबड़ खाबड़ अस चरित्र का
सभ्‍भ नीक बन जांय द्‌या।
औ कलिंग के छाती मां
करूणा कै लीख बन जांय द्‌या।
ओउं सीता मइया का
पलिहैंअपनें आश्रम मां,
पहिले हमरे ‘रत्‍नाकर'का
बालमीक बन जांय द्‌या॥
...............  .......................................
उनखेे कइ शरद्‌‌ अस   पूनू
हमरे कइ्र्र अमउसा है।
रदगदग द्‌यांह फलाने कै,
हमरे तन मां खउसा है॥
उंइ गमला कै हरिअरी देख,
खेती कै गणित लगउथे,
काकू कहाथे चुप रहु दादू भउसा है॥
...............  ..............................................
हमरे ईर्मानदारी का रकवा रोज घटाथै।
सुन के समाचार कर्‌‌याजा फटाथैै॥
जब उनसे पूंछ्‌यन त कहाथें फलाने,
चरित्र का प्र्र्रमान पत्र थाने मां बठाथै॥
..................  ...........................................
बड़े ललत्‍ता हया फलाने।
ताश के पत्‍ता हया फलाने॥
हम तोहइ थान मन्‍यान तै,
पै तुम लत्‍ता हया फलाने॥
................ ........................................
मरजादा का उंइ दंड कहा थें।
बंदेमातरं का पखंड कहा थें॥
रोज महतारी जेही ढाढस बधाउथी
उंइ बेरोजगार का बायबंड कहा थें॥
अब सेंतै लागै मांख फलाने ।
हा तुमहिन सबसे बांख फलाने॥
तुहिन लगाये रह्‌या अदहरा
तुहिन उचाबा राख फलाने॥
...........................................
आज काल्‍ह उंइ जादा दुखी हें।
लागथै उनखर परोसी सुखी हें॥
बड़े शीलवान उपरंगी जनाथें,
पै भितरै भीतर ज्‍वाला मुखी हें॥
...............................................
खूब सुन्‍यन हम भाषन बांझ।
आपन   दोउ  कान मांज॥
अउर बजायन बल भर तारी,
न उनही शरम न हमहीं लाज॥
.....................................................
अभुआंय लगेहें परेत पुन देवार मां।
शहरन मां गांवन मां घर घर दुआर मां॥
कहिन सेंतै भगीरथ तपिस्‍या करिन तै,
हम गंगा लै आनित बइठ के नेबार मां॥
................................................
न पाक के अतंकी चालन से ड्‌यर लगै।
देश का देशी दलालन से ड्‌्रयर लगै॥
जे लुकाये बइठ अपने घर मां मगर मच्‍छ,
उंइ अगम दहार अस तालान से ड्‌यर लगै॥
...........................................................
काल्‍ह बतामैं गंगा भट्‌ट।
मचा सांझ के लठमलठ्‌ठ॥
हम होन गयन करैं समझउता,
हमरेन लगिगा हरिजन एक्‍ट॥
......................................................
फसल हुंअय होथी जहां सींच होथै।
कमल हुंअय खिली जहां कीच होथै॥
उनसे कहि द्‌या जमान सम्‍हार के बोलै,
मनई जात से नही बात से नीच होथै॥
........................................................
अपना कइती चकाचक्‍क है।
औ हमरे कइती कुतक्‍कहै॥
अब वा कबहूं ठाढ न होइ
जे नजरन से गिरा भक्‍क है॥
.....................................................
व्‍यापार उइ कराथें त वहौ किस्‍त मां।
तकरार उंइ कराथे त वहौ किस्‍त मां॥
जीवन मां अर्थशास्‍त्र का येतू असर परा
प्‍यार उंइ कराथें त वहौ किस्‍त मां॥
.............................................................
हम अपने संकल्‍प से नट नही सकी।
अपने गाँव के मांटी से कट नही सकी॥
हम सुरिज आह्‌यन जोधइया न समझा
डूब ता जाब पै घट नही सकी॥
.........................................................
अमल्‍लक जनाथै उनखे चाल से।
हरिश्‍चंद का समझउता है नटवरलाल से॥
लवालब भरा है त आज उइ टर्राथें
सब गूलर भाग जइहै सूख ताल से॥
........................................................
खादी से कहां चूक भै चरखा बताउथें।
केतू भा अजोर य करखा बताउथें॥
जे रोज बोतल का पानी पियाथें
उइ अपने का नदियन का पुरखा बताउथें॥
...........................................................
गूंज रही परभाती भइलो।
रोज बराथी बाती भइलो॥
दिन भर देंय अनूतर गारी
सांझ करै संझवाती भइलो॥
..........................................................
न अकरन न लिहाज फलाने।
कहां गिरी य गाज फलाने॥
कांधा से दुपट्‌टा हेरायगा
प्रगतिशील भै लाज फलाने॥
.....................................................
खूब सुन्‍यन हम भाषन बांझ।
आपन दोउ कान मांज॥
अउर बजायन बल भर तारी
न उनही शरम न हमही लाज॥
............................................................
न पाक के अतंकी चालन से डर लगै।
देस का गद्‌दार दलालन से डर लगै॥
जे लुकाये बइठ अपने पानी मां मगर
अइसा अगम दहार उंइ तालान से डर लगै॥
...........................................................
अब सेंतै लागै मांख फलाने।
हा तुमहिन सबसे बांख फलाने॥
तुहिन लगाये रह्‌या अदहरा
तुहिन उचाबा राख फलाने॥
............................................................
जउन उइ कहै वहै इतिहास आय।
फलाने कहाथें लगथै बदमाश आय॥
अरे दूध से भरा चह दारू से
संसद भवन त गिलास आय॥
..............................................................
अजल्‍याम कै कमाइ दवाई मां जाथी।
पउन ले अइहा सबाई मां जाथी॥
ईमानदारी के रोटी से संस्‍कार आउथें
बेइमानी कै झगड़ा लड़ाई मां जाथी।ं।
................................................................
काल्‍ह बतामै महतौ चुन्‍नी।
पसीझ पसीना कै पैसुन्‍नी॥
देंह देखाउत बागै मल्‍लिका
औ बदलाम भै बपुरी मुन्‍नी॥
..................................................
जे हांथ कटवाय लेय वोही ताज कहाथें।
जे ढोलकी फोर डारै वोही ओस्‍ताज कहाथे॥
झूरै न होय आपन भारत य  महान्‌ है
हेन पक्‍के जुआरी का धरम राज कहाथे॥
.........................................................
जे मरे के बाद बचै वहै सयान आय।
पेट पलै जेसे वहै जबर ज्ञान आय॥
जे अक्षर कविता कै बोली लगाउथे
वहै निकहा कवि औ बड़ा विद्वान आय॥
............................................................
हेन अतरे दुसरे विस्‍फोट ह्‌वाथै।
उइ कहाथें लोकतंत्र मोट ह्‌वाथै॥
नाक मां रूमाल धरे बांटथें मांवजा
उनखे निता मनई बस एक वोट ह्‌वाथै॥
................................................
अनमन अनमन सयान बइठें।
टनमन पीरा के बयान बइठें॥
दोउ जून जूड़े जिव रोटी नही मिलै
आंसू पी पी के अघान बइठें॥
.....................................................
आचरन रहाथें जब नेम धेम से।
तब जीवन चलाथै कुशल क्षेम से॥
उंइ रोज चार ठे कुलांचै सुनाउतींहै
को अम्‍मा अस परसाथै टठिया प्रेम से॥
...............................................
अंतस के पीरा का भुतही बताउथे।
पुजहाई टठिया का छुतही बताउथें॥
जे तरबा चाटाथे विदेसी परिपाटी के
उंइ अपने माटी का जुठही बताउथे॥
....................................................
केतू भइलो अबै समोखी।
कब तक होइ फुरा जमोखी॥
भारत माता सिसक रही ही
कब तक खुलिहैं आंॅखी ओखी॥
हेमराज हंस  9575287490 

bagheli kavita अचरा मां ममता धरे, नयनन धरे सनेह।

बघेली दोहा 

अचरा मां ममता धरे, नयनन धरे सनेह।
माँ शारद आशीश दे,शक्‍ति समावे देह॥
रहिमन पनही राखिये,बिन पनही सब सून।
दिल्‍ली से हैै गांव तक,पनही का कानून॥
राखी टठिया मां धरे,बहिनी तकै दुआर।
रक्‍छाबंधन के दिना, उइं पहुचे ससुरार ॥
गोबर से कंडा बनै, औ गोबरै सेे गउर।
आपन आपन मान है,अपने अपने ठउर॥
जेखे पीठे मां बजा,बारा का धरियार।
ओहिन की दारी सुरिज,कणै खूब अबियार॥
रजधानी मां गहग़़डडृव,खूब पटाखा फूट।
बपुरे हमरे गांव के,धरी बडेरी टूट॥
हमरे लोक के तंत्र का,देखा त अंधेर।
साहब आगू भींज बिलारी,चपरासी का शेर॥
गददारी उंइ करथें,खाय खाय के नून।
लोकतंत्र के देह मां,भ्रस्‍टाचार का खून॥
बदरी जब गामै लगी,बारिस वाले छंद।
बूंदन मां आमै लगा,दोहा अस आनंन्‍द॥
गदियन मां मेहदी रची,लगा महाउर पांव।
सावन मां गामय लगा,कजरी सगला गांव॥
अस कागद के फूल मां,गमकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलै,पंचवटी का संत।
जुगनू जब खेलिस जुआं,लगी जोधइया दांव।
पुनमांसी पकडै.लगी,अधियारे के पांव ॥
हेमराज हंस      मैहर  9575287490 

मैहर धाम bagheli kavita

मैहर धाम 


मइहर है जहां विद्या कै देवी,
विराजी माँ शारद शक्‍ति भवानी।
पहिलय पूजा करय नित आल्‍हा,
औ देवी के वर से बना वरदानी॥
मइहर है जहा लिलजी के तट ,
मठ मह शिव हें औधड.दानी॥
ओइला मां मन केर कोइला हो उज्‍जर,
लंठव ज्ञानी बनै विज्ञानी।
मइहर है जहा संगम है ,
सुर सरगम कै झंकार सुहानी॥
अइसा पुनीत य मइहर धाम कै,
शत शत वंदन चंदन पानी॥

हेमराज हंस  मैहर 

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita: वंदना  हे मातु शारदे संबल दे तै निरबल छिनीमनंगा का। मोरे देस कै शान बढै औ बाढै मान तिरंगा का॥ दिन दिन दूना होय देस मां लोकतंत्र मजबूत। घ...

bagheli kavita

वंदना 

हे मातु शारदे संबल दे
तै निरबल छिनीमनंगा का।
मोरे देस कै शान बढै
औ बाढै मान तिरंगा का॥
दिन दिन दूना होय देस मां
लोकतंत्र मजबूत।
घर घर विदुषी बिटिया हों औ,
लड़िका होंय सपूत॥
विद्वानन कै सभा सजै औ
पतन होय हेन नंगा का।
मोरे देस कै शान बढै
औ बाढै मान तिरंगा का॥
‘बसुधैव कुटुंम्‍बं' केर भावना
बसी रहै सब के मन मां।
औ परबस्‍ती कै लउलितिया,
रहै कामना जन जन मां ॥
देस प्रेम कै जोत जलै,
कहूं मिलै ठउर न दंगा॥
मोरे देस.........................
खेलै पढै बढैं बिद्यार्थी,
रोजी मिलै जबानन का।
रोटी औ सम्‍मान मिलै,
हेन घर घर बूढ़ सयानन का॥
रामेश्‍वरं मां चढत रहै जल,
गंगोतरी के गंगा का।
मोरे देस कै ......................
हेमराज हंस  9575287490 
मैहर म प्र .

बुधवार, 13 जुलाई 2016

कइसन चलै अटाला दादू। हेमराज हंस --9575287490

मॅहगाई
कइसन चलै अटाला दादू। 
कुच्छ त  चर्चा चाला दादू।। 
महगाई मा साध्या मउनी 
मुंह मा  लागि गा टाला दादू। । 
हेमराज हंस --9575287490  

bagheli kavita ग़रीब कै मढ़ैया बरसा उधेर लीन्हिस ।

मॅहगाई 

 ग़रीब कै मढ़ैया बरसा  उधेर लीन्हिस । 
मंहगाई मनई का चरसा उधेर लीन्हिस । 
मलागिर खिआय गा घिस घिस के हंस 
चंदन कै गमक सगली ह्वरसा उधेर लीन्हिस। । 
हेमराज हंस======= 9575287490 

गुरुवार, 30 जून 2016

जब से मूड़े मा कउआ बइठ है। हेमराज हंस ===9575287490

बघेली लोक साहित्य 

जब से मूड़े मा कउआ बइठ है। 
अशगुन लये बऊआ बइठ है। । 
 इंदिरा आवास कै क़िस्त मिली ही 
वा खीसा मा डारे पउआ बइठ है। । 
पर साल चार थे दाना नहीं भा 
औ सेंदुर रुपया लये नउआ बइठ है। । 
छै महिना से मजूरी नहीं मिली 
वा कखरी मा दाबे झउआ बइठ है। । 
उइ कहा थें देस भ्रष्टाचार मुक्त है 
कुर्सी मा जहां देखा तहां खउआ बइठ है। । 
गरीबी से बोलिआय का अंदाज अलग है 
उई हंस का बताउथे भतखउआ बइठ है। । 
हेमराज हंस ===9575287490