शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

मंगलाचरण मंत्र पुष्पांजलि

श्रीमन्महागणाधिपतये नमः । लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः । उमा महेश्वराभ्यां नमः । वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः । शचीपुरन्दराभ्यां नमः । मातृ-पितृ-चरणकमलेभ्यो नमः । इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः । स्थानदेवताभ्यो नमः । सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः ।

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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

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गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम् ।

उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम् ॥

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वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि ।

मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ ॥1॥

ॐ गणानां त्वा गणपति ग्वँग् हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति

 ग्वँग् हवामहे निधीनां त्वा निधीपति ग्वँग् हवामहे वसो मम। 

आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥

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ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन।

 ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्॥

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ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।

शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

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ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।

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नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते |
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते || १ ||

या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी-रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥

त्रैलोक्य पूजिते देवि कमले विष्णु वल्लभे।
यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरां॥
कमला चंचला लक्ष्मीश्चला भूति हरिप्रिया।
पद्मा पद्मालया सम्पद रमा श्री पद्मधारिणी॥
द्वादशैतानि नामनि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत्
स्थिरा लक्ष्मी भवेत् तस्य पुत्रादिभि: सह॥

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सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने ।

विद्यारुपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोsस्तु ते ।


बुद्धिं देहि यशो देहि कवित्वं देहि देहि मे।

मूढत्वं च हरेद्देवि त्राहि मां शरणागतम्।।


या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।।

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।


शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं।

वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।

हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।

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देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।

 प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥

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ओ३म् भूर्भुव: स्व: ।

तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।

धियो यो न: प्रचोदयात् ॥ यजुर्वेद 36.3

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गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः॥

अखंड-मंडलाकारं व्याप्तम येन चराचरम तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः.॥

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आदिदेव नमस्तुभ्यं  प्रसीद मम  भास्कर ।

        दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥ 

एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते ।

 अनुकम्पय मां देवी गृहाणा‌र्घ्यं दिवाकर ।। 

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कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

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भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ ।

याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम् ॥2॥

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वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम् ।

यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते ॥3॥

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ॐकारं बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिन : ।

कामदं मोक्षदं चैव  ॐकाराय नमो नम :॥

त्रिलोकेशं नीलकण्ठं गंगाधरं सदाशिवम्

मृत्युञ्जयं महादेवं नमामि  तं  शंकरम् ।।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । 

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

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 ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च। 

गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु। 

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ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय।

मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।

मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥


शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।

लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं

वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥


तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव ।

विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेंऽघ्रियुगं स्मरामि ॥

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सशड़्खचक्रं सकिरीटकुण्डलं सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।
सहारवक्षः स्थलकौस्तुभश्रियं नाममि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम।।
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लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।

कारुण्यरुपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥


नीलाम्बुज श्यामल कोमलांगम सीतासमारोपित वामभागम् |

पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम् || (अयो. का. श्लोक ३)

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥

राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥


सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ ।

वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कबीश्वरकपीश्वरौ ॥4॥


उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम् ।

सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम् ॥5॥


अपि स्वर्णमयी लङका न मे लक्ष्मण रोचते ।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥

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कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।

प्रणत क्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:

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वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर्मर्दनम्। 

देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।


मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिं।

 यत्कृपा तमहं वन्दे परमानंद माधवम्।। 


सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे! 

तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: !!


वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः। 

जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

 परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् |
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जय मुदीरयेत् ||   महा ० १ 

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मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।

 वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।

 

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम् , दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् |

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम् , रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ||

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त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।

त्वमेव विद्या च द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।।

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ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः ।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

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ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:,

पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: ।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,

सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि ॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

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ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः 

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आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।

पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।

यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥

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