चलै मस्त बयार पियार लगै महकै महुआ अस देह के फागुन।
राई निकरी पहिरे पियरी तब सुदिन से्ंधउरा के नेह के फागुन।।
जब काजर से मेंहदी बोलियान ता घूंघट नैन मछेह के फागुन।
औ लजबंतिव ढ़़ीठ लगै जब रंग नहाय सनेह के फागुन। ।
हांथी के चाल चलै लजवंती ता महकै हाथ कलाई मा फागुन। ।
गाल मा फागुन चाल मा फागुन औ गमकत पुरबाई मा फागुन।
देस निता जे शहीद भें बीर त भारत के तरुनाई मा फागुन। ।
मस्ती मा फागुन बस्ती मा फागुन मिल्लस बाली गिरस्ती मा फागुन।
दीन दुखी के मढ़इया से लइके कोठी हवेली औ हस्ती मा फागुन। ।
रंग मा फागुन भंग मा फागुन उमंग उराव के कस्ती मा फागुन।
य महगाई मा होरी परै कुछ आबै सह्वाल औ सस्ती मा फागुन। ।
जिनखे घरै न बरै चुल्हबा, है उनखे निता उपचीर या फागुन।
ढोल मजीरा नगरिया बजाय, करै मन कदाइला का थीर या फागुन। ।
मिल्लस केर अबीर लगय जब देस जनाय कबीर या फागुन।
प्रेम के रंग मा देस रंगी जब , उन्नत देस का नीर या फागुन। ।
सखी ! जबसे बसें परदेस पिआ तब से मन रोज उबान रहै।
औ फागुन आबा अकारथ ता तन एकव न ग्यान गुमान रहै।।
रंग का नेह लगै जब देह ता मन अनमन फ़गुआन रहै।
उइ होतें जो नेरे इहै कहतें ससुरार रहय सडुआन रहै। ।
बुढ़ऊ ता रंग गुलेल रचें हय उनखर भाग अनुराग ता देखा।
भर पिचकारी चलाबत सारी औ जीजा से खेलत फ़ाग ता देखा। ।
औ गाले अबीर मल्हय सरहज ननदोई बना है काग ता देखा।
भारत कै हमरे परिपाटी औ रिस्ता नाता कै पाग ता देखा। ।
@हेमराज हंस भेड़ा मइहर
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