भाई चारा मा रगा , चला लगाई रंग।
अपने भारत देस मा बाढय प्रेम उमंग।।
अकहापन औ इरखा राई चोकरा नून।
होरी मा जरि जाय सब बैर बिरोध कै टून।।
सुखी संच माही रहय आपन भारत देस।
प्रेम पंथ प्रहलाद का न कोउ देय कलेस। ।
अंग अंग पूंछय लगा मन मा लिहे मिठास।
कबै अयी वा सुभ घरी जब टूटी उपबास। ।
कथा पुरानन कै हमी दीन्हे ही मरजाद।
जली आग मा होलिका बचें भक्त प्रह्लाद। ।
खेतन मा पाकै फसल घर मा आबै अन्न।
होरी परब मनाय के खेतिहर लगैं प्रसन्न। ।
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