फुरा जमोखी खर पक्का।
काल्हय कइगें ते कक्का।।
पइड़े परें जे मानस के
कबय खुली उनखर जक्का। ।
वा लगत रहा मनसेरू अस
पूर पार निकला छक्का। ।
मरजादा किकिआय लाग
मिला दुःशासन अड़भक्क । ।
सिसकें तुलसी दास बहुत
लाग करेजा का धक्का।।
चउपाई का कहैं कुलांचैं
लुच्चन के लगिगा लक्का। ।
अंतस का पुस्टई देंय का
हंस आय मानस मुनक्का। ।
धरम कै या दुरगती देख
हंस हबै हक्का बक्का । ।
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