आबा बसन्त स्वागत है पै ठूंठ बचा है।
अपना के अपमान का घूंट बचा है।।
धूर धुँआ धुंध से गाँव खाँसा थें
मन के परदूसन का मूंठ बचा है। ।
रीमा सीधी सतना सहडोल कोल डारिन
अब फलाने कहाथें चित्रकूट बचा है।।
भुंइ का करेजा तक बेंच खा लिहिन ता
धरती के गहिर घाव चारिव खूंट बचा है।।
परियाबरन जिन्दा है हजूर के बइठक मा
बन बासी जीव केर जटा जूट बचा है।।
साम्हर सेर हिरन ता सरकस मा चलेगें
हंस नदी तीर रोबत ऊंट बचा है। ।
हेमराज हंस - भेड़ा मइहर
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