होय खूब सम्मान औ , चढ़ै रोज जल फूल।
रेंड़ा तुलसी का कहै, चिढ़ के ऊल जलूल।।
हेमराज हंस
होय खूब सम्मान औ , चढ़ै रोज जल फूल।
रेंड़ा तुलसी का कहै, चिढ़ के ऊल जलूल।।
हेमराज हंस
हमरे नुकसान केर डाँड़ बांकी है।
जे गरीब तक से लिहिन, अपने पुरबी घूंस।
देशभक्ति के सभा मा, ओखर जबर जलूस।।गीतांश ---
सुध कीन्हिस कोउ आई हिचकी।
अपना ता सेंतय का बिचकी।।
बीत रहीं अगहन की रातैं।
कुकर करै अदहन की बातैं।।
सुन सुन के बिदुराथी डेचकी।
सुध कीन्हिस कोउ आई हिचकी।।
रहि - रहि के सुहराथै तरबा।
मुंदरी से बोलियाथै फ्यरबा।।
औ आपन अंगुरी चूमै सिसकी।
सुध कीन्हिस केउ आई हिचकी।।