श्री मैथिली शरण शुक्ल 'मैथिल'
यदि सीधी जिले के बघेली मंचीय कवियों पर गौर किया जाय तो आप को एक कवि हर कवि सम्मेलन में अक्सर उपस्थित मिलेगे। वे है सरल सहज अत्यंत मिलनसार कवि श्री मैथिली शरण शुक्ल जी मैथिल ।
यू तो उनका जन्म रीवा जिले में तिवनी के पास एक गाँव में हुआ था पर mpeb की नोकरी के कारण सेवा निबृत्त तक कार्य क्षेत्र सीधी जिला ही रहा।
श्री मैथिलि जी ने बघेली की अनेक बिधाओ में कविता लिखी है। आइये उनकी कविताओं से आप को रूबरू करवाते है। सबसे पहले उनकी एक कविता "खुरपचहा ढर्रा" का रसास्वादन करे।
चिटकी नही बेमाई ह्इ, पाएन मा दर्रा ।
तकवारी गोरुअन कै, खुरपचहा ढर्रा।।
अंगरेजनि के नेति केरि ,गठरी फे छोरि दिहिनि,
परेम के लोटा मा माहुर फे घोरि दिहिनि।।
भगमान भगउते जो भारत से भर्रा।
तकवारी गोरुअन के खुरपचहा ढर्रा।।
दिन भर सल्लाह करइ बइठ एक ठाउ मा।
साँझइ सकाइ उजिगर,फेरि जंगल से गाउ मा ।।
शहर केरि पउसी हइ गमई का छर्रा।
तकवारी गोरुअन के खुरपचहा ढर्रा।।
सिरमिंट अउ मसाला सब भीट म सोखरि गा।
कंताले केरि पानी सब भऊ से निकरि गा।।
सगला घर लसर फसर मालिक भर कर्रा।
तकवारी गोरुवन के खुरपचहा ढर्रा ।।
इसी गोत्र की उनकी एक अन्य कविता भी देखे
इसका शीर्षक उनने " कानी कउड़ी नही भंडारे" दिया है।
वादा कीन्हे रहे जउन तू बिसरे हो भिनसारे।
चका चउध मा अइसन भूले लउटे नही दुआरे।।
नोचि सुदर्शन लिहै गइलि ते,पीट दीहै पुनि कांटा।
डांगर बरदा हक्के आबा छूट नबोढ़ा नाटा ।।
कीहेस दगा हइ समइ पाइ के धो बिधि लिखिस लिलारे
चका चउध मा अइसन भूले लउटये नही दुआरे ।।
पदबी मिली जउन दिन से ओढ़े लबरी के अलगा।
मेटि दीहै पुनि सुने तकइयउ खेत चराया सलगा।
एमर बेलि बनि बउड़े अइसन सूखे पेड़ बिचारे।
चका चउध मा अइसा भूले लउटे नही दुआरे।।
भेट होइ जो तीजा फगुआ तबऊ दइऊ अस गरजा
खोखल हिंदुथान किहे सब खूब चढ़ाए करजा।।
झँन झनात सब खाली कुठली कउड़ी नही भंडारे।
चका चउध मा अइसा भूले लउटे नही दुआरे।।
PADMSHRI BABULAL DAHIYA JI