शनिवार, 26 अक्तूबर 2024

लाट बनमै का रहा खाम्हा बना दइस ।

 लाट  बनमै   का  रहा  खाम्हा बना दइस । 

छाया  कम  रही  ता  लम्मा   बना  दइस।।


देस  के  करतूती   बइठ  हें  हाथ  सकेले

सेंत  का  अनाज  निकम्मा   बना  दइस।।


का खुरपी गहन कीन्हे का मुक्तये हँसिया के 

वा  कबरा काही रंग के  तम्मा  बना दइस।।


अठमाइनव  चढ़ाये  मा देवी   रिसान  ही 

पाँव  छुए  काम  सब अम्मा  बना  दइस।।


घिनहा  आतंक  बगरा  हबै कालयबन का 

कइसा दुस्ट दादू का रम्भा  बना दइस।।


वा बोली के बखरी मा है बहुरी बरात अस 

कइसा अडारन हंस का ब्रह्मा बना दइस।।

हेमराज हंस भेड़ा मइहर मप्र 

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2024

का बताई की कहा कहा पिरात है।

का   बताई   की   कहां    कहां   पिरात  है। 

बैचैन  हबै  जिउ  मन   बूढ़त   उतरात  है।।  


उनखर फरक रही ही सकारे से बायीं आँख

पलकैं लगउतीं लूसी  ता  काजर सुगात है।।


वाठर  बनाउत    तक   ता  उनसे  नहीं बनै 

लबरी   बता   रहे   हें  अमल्लक   जनात है ।।


उनखे  चिकोटी  चींथे  कै चिन्हारी  बनी  ही 

अंतस  मा  उनखे   प्रेम  का   जल प्रप्रात है।।


पाबन   पुनीत  प्रीत   कै  पूजा  यतर  ही  हंस 

तुलसी के चउरा  का दिआ  जस टिमटिमात है।।

हेमराज हंस   


सोमवार, 14 अक्तूबर 2024

अब तो भइया जी अती होइगै।

अब तो भइया जी अती होइगै।
समाज कै दुरगती होइगै।।
उनखे गाड़ी मा लगिगा हूटर
जब ओहदा मा श्री मती होइगै।।
होत होई काहू का फायदा
पै अपने देस के छती होइगै।।
वा ता भेजे रहा पढ़य खातिर
पै समाज मा नककटी होइगै। ।
भले भिरुहाये मा भसम भें मदन
पै विधबा तो बिचारी रती होइगै।।
भाईचारा के विश्वविद्यालय मा हंस
कुलटा राजनीत कुलपती होइगै।।
हेमराज हंस --

रविवार, 13 अक्तूबर 2024

छोहगइली लये चांदनी

 छोहगइली लये चांदनी, जागी सगली रात। 

नदी तीर गोठत  रहा, चन्दा रोहणी साथ  । । 

जब से पोखरी ताल का, होइगा पानी थीर। 
ता चकबा निरखैं  लगा, चंदा  कै  तसबीर।।  

प्रेम भरी पोखरी रही,

 प्रेम भरी पोखरी रही, कोउ दिहिस घघोय। 

जस बिजली के तार का, जम्फर टूटा होय।। 

हेमराज हंस  

पहिले लड़ीं गिलास खुब

पहिले लड़ीं गिलास खुब, नेम प्रेम सम भाव। 
फेर गारी गुझुआ  भयीं, होय  लाग जुतहाव।। 
हेमराज हंस 

शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

श्री मैथिली शरण शुक्ल 'मैथिल'

 श्री मैथिली शरण शुक्ल 'मैथिल'

यदि सीधी जिले के बघेली मंचीय कवियों पर गौर किया जाय तो आप को एक कवि हर कवि सम्मेलन में अक्सर उपस्थित मिलेगे। वे है सरल सहज अत्यंत मिलनसार कवि श्री मैथिली शरण शुक्ल जी मैथिल ।
यू तो उनका जन्म रीवा जिले में तिवनी के पास एक गाँव में हुआ था पर mpeb की नोकरी के कारण सेवा निबृत्त तक कार्य क्षेत्र सीधी जिला ही रहा।
श्री मैथिलि जी ने बघेली की अनेक बिधाओ में कविता लिखी है। आइये उनकी कविताओं से आप को रूबरू करवाते है। सबसे पहले उनकी एक कविता "खुरपचहा ढर्रा" का रसास्वादन करे।
चिटकी नही बेमाई ह्इ, पाएन मा दर्रा ।
तकवारी गोरुअन कै, खुरपचहा ढर्रा।।
अंगरेजनि के नेति केरि ,गठरी फे छोरि दिहिनि,
परेम के लोटा मा माहुर फे घोरि दिहिनि।।
भगमान भगउते जो भारत से भर्रा।
तकवारी गोरुअन के खुरपचहा ढर्रा।।
दिन भर सल्लाह करइ बइठ एक ठाउ मा।
साँझइ सकाइ उजिगर,फेरि जंगल से गाउ मा ।।
शहर केरि पउसी हइ गमई का छर्रा।
तकवारी गोरुअन के खुरपचहा ढर्रा।।
सिरमिंट अउ मसाला सब भीट म सोखरि गा।
कंताले केरि पानी सब भऊ से निकरि गा।।
सगला घर लसर फसर मालिक भर कर्रा।
तकवारी गोरुवन के खुरपचहा ढर्रा ।।
इसी गोत्र की उनकी एक अन्य कविता भी देखे
इसका शीर्षक उनने " कानी कउड़ी नही भंडारे" दिया है।
वादा कीन्हे रहे जउन तू बिसरे हो भिनसारे।
चका चउध मा अइसन भूले लउटे नही दुआरे।।
नोचि सुदर्शन लिहै गइलि ते,पीट दीहै पुनि कांटा।
डांगर बरदा हक्के आबा छूट नबोढ़ा नाटा ।।
कीहेस दगा हइ समइ पाइ के धो बिधि लिखिस लिलारे
चका चउध मा अइसन भूले लउटये नही दुआरे ।।
पदबी मिली जउन दिन से ओढ़े लबरी के अलगा।
मेटि दीहै पुनि सुने तकइयउ खेत चराया सलगा।
एमर बेलि बनि बउड़े अइसन सूखे पेड़ बिचारे।
चका चउध मा अइसा भूले लउटे नही दुआरे।।
भेट होइ जो तीजा फगुआ तबऊ दइऊ अस गरजा
खोखल हिंदुथान किहे सब खूब चढ़ाए करजा।।
झँन झनात सब खाली कुठली कउड़ी नही भंडारे।
चका चउध मा अइसा भूले लउटे नही दुआरे।।
PADMSHRI BABULAL DAHIYA JI

माटी का गौरव कहूं,

 माटी का गौरव कहूं, याकी ग्राम उजास। 

सादर है शुभकामना, पंडित राम निवास।।  


शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

राबन जब से बना है,

 राबन जब से बना है, उनखे दल का ब्रांड।

तब से दुनिया त्रस्त ही, हलकान ब्रम्हाण्ड।।

राबन जब राजा बना, दीन्हिस बनै कानून। 

जेखे टेक्स कै जर नहीं, पील्या वाखर खून।। 

हेमराज हंस  


शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2024

तहिन रखइया लाज।

हे जग जननी शारदे, तहिन रखइया लाज।   
तोरे क्वारा सकार हो, औ अंचरा मा सांझ ।।  

गूंजय मइहर धाम मा भगत ऋचा श्लोक।
हरतीं मइया सारदा भक्त के संकट सोक।।
दुनिआ मा हो शान्ती, हे ! माता स्कंद।
हे ! दुरगा दुरगति हरा, बाढ़य प्रेम आनंद।।
हंस -भेड़ा