सोमवार, 1 जुलाई 2024

ना आकरन लिहाज राम दै।

 ना आकरन    लिहाज   राम दै। 
कहाँ    गिरी  या   गाज  राम दै।। 

सुन्यन   सभ्भदारन    की  बातैं
मूड़   गड़ा   के आज   राम दै।।

कहिन गऊ का जब  हत्त्यारिन  
लाग ना  एकव  लाज  राम दै।।

बरात मा काहू के देखेन होइहा 
भले  नहीं  भा  काज  राम दै। ।

तुलुर  तुलुर  कइ  लहके  गे पै  
नेत  का  भा  अंदाज  राम दै। ।

कइ ल्या भूंभुर खूब  हंस   तुम 
है पद का यहै रिबाज  राम दै। ।
हेमराज हंस  --मैहर 

शनिवार, 29 जून 2024

गुरुवार, 27 जून 2024

अम्‍मा ! हमहूं करब पढाई।


  बघेली बाल गीत 
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अम्‍मा  ! हमहूं करब पढाई।
देहैं   बुद्धी   बिद्या   माई ।। 
हम न करब घर कै गोरूआरू औ न चराउब गइया।
कह  दद्‌दा  से  जांय   खेत   औ ताकै खुदै चिरइया॥
हम न करब खेतबाई।
अम्‍मा.........................
आज गुरूजी कहिगें हमसे तु आपन नाव लिखा  ल्या ।
पढ लिख के हुशिआर बना औ किस्‍मत खुदै बना ल्‍या॥
येहिन मां हिबै भलाई।
अम्‍मा..........................
गिनती  पढबै  पढब  दूनिया बाकी जोड़ ककहरा।
अच्‍छर अच्‍छर जोड़.जोड़ के बांचब ठहरा ठहरा॥
औ हम सिखब इकाई दहाई।
अम्‍मा.............................
हम न खेलब किरकिट बल्ला औ न चिरंगा धूर।
पढब  लिखब  त  विद्या माई द्‌याहैं  हमी शहूर॥
करब देस केर सेवकाई।
अम्‍मा ......................
बहुटा गहन कइ अंउठा लगा के दद्‌दा कढैं खीस।
देंय बयालिस रूपिया बेउहर  लिखै चार सौ बीस ॥
ल्‍याखा ल्‍याबै पाई पाई।
अम्‍मा हमहूं करब पढाई॥
हेमराज हंस 

सोमवार, 24 जून 2024

MAIHAR RAJY KA ITIHAS

 

 मैहर रियासत के राजा बृजनाथ सिंह जू देव (जन्म 1896 – मृत्यु 1968) का 16 दिसंबर 1911 में राज तिलक हुआ।  वे प्रजा पालक धर्मनिष्ट न्यायवादी राजा थे। उन्ही के शासन कल में मैहर में एक तपोनिष्ट सिद्ध संत प्रातः स्मरणीय स्वामी नीलकंठ जी महराज (जिनका आश्रम अब भी ओइला में है ) भी रहते थे। उस समय मैहर के भदनपुर पहाड़ की घाटी  में कल्लू डाकू का बहुत अत्याचार था ,लूटपाट हत्या जैसे जघन्य अपराध करके जन मानस को भयभीत कर रखा था। जनता त्राहि त्राहि कर रही थी।  जब खबर किले तक पहुंची तो ,राजा ने जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए डाकू के ऊपर 500/ का ईनाम घोषित कर दिया। परिणाम स्वरुप  बदेरा गाँव के साहसी चौबे लोगों ने उसे जिन्दा पकड़ कर राजा को सौप दिया। राजा की कचहरी में न्याय प्रकिया का पालन करते हुए अदालत ने कल्लू डाकू को फांसी की सजा सुनाई । फांसी की खबर पूरे मइहर राज्य में फ़ैल गईं। जनता उराव मनाने लगी। 16 जनबरी 1912 को  विष्णुसागर  में  फांसी देने का समय निर्धारित। हुआ। फांसी के एक दिन पहले कल्लू डाकू की पत्नी रोते  हुये  प्राणदान की याचना लेकर राज दरवार  गई किन्तु राजा ने उसकी याचना  स्वीकार नहीं की।  तब  उसे किसी ने सलाह दी की वह स्वामी नीलकंठ जी के पास अपनी बिनती सुनाये।  मैहर के राजा उनकी बात नहीं टालेंगे। उसने वैसा ही किया। ओइला आश्रम में महिला को सम्मान सहित जलपान भोजन कराया गया।  इसके बाद स्वामी नीलकंठ महराज जी ने महिला के रुदन से द्रवित होकर उसे वचन दे दिया की कल्लू को फांसी नहीं होगी,भले उम्र कैद हो जाय। और स्वामी जी रात के 12 बजे किला पहुँच कर आपात काल बाला घण्टा बजाने लगे।घंटनाद  सुनकर महाराज बृजनाथ सिंह जू  किले से निकल कर ड्योढ़ी पर आकर देखा तो स्वामी जी को देख कर अवाक् रह गये। उनके चरणों में दण्डवत प्रणाम कर हाथ जोड़ के पूंछने लगे ,बोले स्वामी जी आधीरात को कौन सी समस्या आ गई। सब कुशल तो है न ? आपने किसी सेवादार को नहीं भेजा स्वयं दर्शन देने आ गए। आदेश कीजिए क्या अड़चन है।  स्वामी जी ने कहा राजन बात ही कुछ ऐसी है की मुझे स्वयं आना पडा। बात ये है की आप कल जिसे फांसी देने बाले हैं ,मै उसका प्राणदान मांगने आया हूँ।  आशा करता हूँ ,आप मुझे निराश नहीं करेंगे। राजा ने कहा स्वामी जी शायद आप को ज्ञात न हो वो कल्लू डाकू कितना दुर्दांत अपराधी है। पचासों हत्याएं ,सैकड़ों लूटपाट का दोषी है ,मैहर की जनता उससे त्रस्त थी ,बड़ी मुश्किल वो पकड़ में आया है। अदालत ने उसे मृत्युदंड की सजा दी है। क्या यह जानकर भी आप उसे बचाने का प्रयास करेंगे ? स्वामी जी ने कहा राजन मै चाहता  हूँ की फांसी की जगह उसे उम्र कैद दे  जाय। राजा ने हाथ जोड़ कर कहा ,स्वामी जी आप छमा करें ,देश की न्यायिक प्रणाली में हस्तक्षेप उचित नहीं है। यदि वह कोई संत या ब्राह्मण होता तो विचारणीय था। किन्तु उस दुर्दांत के अपराध के अनुपात में ही सजा दी गई है। आप कोई और सेवा करने का अवसर प्रदान करें। स्वामी जी क्रोधित हो गये ,और कहा की यदि मेरी बात नहीं मानी  गयी  तो मै तुम्हारे राज्य का अन्न जल नहीं ग्रहण करूँ गा।  इतना कह कर अपने आश्रम आ गये। सुबह १०  बजे कल्लू डाकू को फांसी दे दी गई। स्वामी जी मैहर त्यागकर उंचेहरा राज्य की सीमा में गणेश घाटी में रहने लगे।नागौद के राजा साहेब ने   वहां  रामपुर पाठा मेंआश्रम बनबा दिया। स्वामी नीलकंठ जी वही रहकर तप करंने लगे। 







रविवार, 23 जून 2024

उइं का भला उसासी द्याहैं।

 उइं  का  भला  उसासी  द्याहैं। 
झरहा  कबों  सब्बासी   द्याहैं।।

जेखे    परी     हिबय  अठ्ठासी 
उइं   का  रोटी  बासी  द्याहैं।।

हें    बिचार     जेखे    अटर्र
उइं आसा नहीं उदासी  द्याहैं।।

जे   पूजी   भारत  माता  का
उइं   ओहिन  फाँसी  द्याहैं।।

अबय मिली ही अबध नगरिया 
ओइन  मथुरा  कासी  द्याहैं।।

हंस ग्यान के हमैं अमाबस 
आने  का  पुनमासी  द्याहैं।।
हेमराज हंस 

गुरुवार, 20 जून 2024

कवि रवि शंकर चौबे

 पीपरबाह  से  देस तक,  गूंज  रहा  साहित्य। 

कोट  बधाई  जनम  कै,  रविशंकर आदित्य।। 


सहज सरल निरछल हिदय, जय हो बानी पूत। 

देस  बिदेस प्रदेस  मा, जस खुब मिलै अकूत।। 


जब  मंचन  मा  बंटत  है, सब्दन  केर  गड़ास। 

खिलखिलात बांटत फिरैं, रबिशंकर जी हास। ।  

हंस   


मंगलवार, 18 जून 2024

जब से य मन मोहित होइगा,

            जब  से य मन मोहित होइगा,    
जब  से य मन मोहित होइगा,  तोहरे निरछल रूप मां।
एकव    अंतर  नही  जनातै,  चलनी  मां  औ  सूप  मां॥

सनकिन सनकी बातैं होइ गईं,लखे न पाइस पलकौ तक।
मन  निकार  के उंइ धइ दीन्हिन ,हमरे दोनिआ दूब   मां॥

ओंठ पिआसे से न कउनौं, एक आंखर पनघट बोलिस।
पता  नही  धौं  केतू  वाठर,  निकराथें   नलकूप   मां॥

रात  रात  भर लिख के   कीरी  , नींद  न आई नैनन  का।
औ मन बाउर ध्यान लगाबै ,  जस  भिच्छुक  स्तूप  मां॥

जब से फुरा  जमोखी होइगै, तन औ  मन के ओरहन कै,
तब  से  महकय  लगें हंस , हो   जइसा   मंदिर  धूप मां॥
हेमराज हंस 

गुरुवार, 13 जून 2024

हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।


 कहूं गिर गै चिन्हारी  नहात बिरिआ। 

हम  आहेंन   वहै करी  थे  किरिआ।।

 

बिसरि  गयन  अपना   वा  प्रेम  का। 

जइसन      बिस्वा  मित्र -   मेनका ।।

हमीं   आजव  लगी  अपना  पिरिया।  

 हम  आहेंन   वहै करी  थे  किरिआ।।


पहिले    सोची   अपना   मन   मा। 

मृग    मारय    आयन  तै  बन  मा।।

पानी   पिअंय   गयन   तै   झिरिआ।

हम  आहेंन   वहै करी  थे  किरिआ।।


अपना   भयन   तै   हमसे    मोहित। 

साक्षी   हैं    रिषि    कण्व   पुरोहित।। 

जब डारि  के जयमाला बन्यन तिरिया।

हम  आहेंन   वहै   करी  थे  किरिआ।। 

 

सुन    के   सकुन्तला    कै     बतिया। 

धड़कय लाग   दुस्यंत   कै   छतिया।।

तबै  नैनन  से ढुरकय लगी   गुरिया।

हम  आहेंन   वहै   करी  थे  किरिआ।।  

हेमराज हंस 

बन बिरबा का धरम से, पुरखा गे तें जोड़।

बन  बिरबा   का  धरम से, पुरखा गे तें  जोड़।

ता पखंड के नाव से , हम सब दीन्हयन  छोड़। ।

हम सब दीन्हयन  छोड़,  बरा औ पीपर पूजब। 

नास्तिक बन के सिख्यन सरग मा होरा भूजब।।

तड़प  रहें  हे  मनई जीव  पसु  पंछी   किरबा। 

चला लउट पुन चली पूजय काही  बन बिरबा।। 

हेमराज हंस  

बुधवार, 12 जून 2024

अइसा सिस्टचार।

 अउर कहूं देखे हयन, अइसा सिस्टचार। 

गहगड्डव है आन के, कहूं पारी ही दार।।

हेमराज हंस