रविवार, 6 नवंबर 2022

जुर्मी सरकार नहीं होय

 दुइ  औ  दुइ  सब  दिन  चार नहीं होय। 
भ्रस्टाचार  कबहूँ  गभुआर  नहीं होय।। 
बपुरे निरदोस जब मराथें  अकाल मउत 
दरबारी कहाथें जुर्मी  सरकार नहीं होय।  
 
भुंइ  हमार  मंदिर  आय  भूत  का  चउरा  न होय। 
या पुरखन कै थाती, धन्ना सेठ का कउरा न होय।
हमहीं    या   धरती     माता    से      कम      नहीं 
लिलारे का चन्दन आय देह का खउरा  न होय ।  । 
 
हेमराज हंस
8 MAR 2020 AT 0:44

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गुरुवार, 3 नवंबर 2022

नकटी कहां से आय गै।


तुलसी के बगिया मा नकटी कहां से आय गै।
यतना पचामै कै शक्ती कहाँ से आय गै । । 
 
जे काल्ह तक धरम का अफीम बताउत रहें
वा कुपोषित बिचार मा भक्ती कहां से आय गै। ।
 
उइ कहा थें काबू मा आतंकबाद है 
फउजी कै हमरे गांव मा तख्ती कहाँ से आय गै। । 
 
दुनिया मा पंचशील का खुब राग अलापा गा 
ता खून सनी खबर कै रक्ती कहां से आय गै। । 
 
असमय ता दसमी केर वा परिच्छा दिहिसी 
हाथे मा लगनपत्री लये अकती कहां से आय गै। । 
 
कबहुं आर्य द्रबिन कबौ मूल निबासी 
समाज टोरय  बाली बिभक्ती कहां से आय गै। । 

 
 

 

बुधवार, 2 नवंबर 2022

काटै फसल किसान

देस  मा  भ्रस्टाचार  का ,  ह्वाथै  यतर निदान।
जइसा जीन्स पहिर के , काटै फसल किसान। ।

रविवार, 30 अक्तूबर 2022

इंदिरा गाँधी

जे बदल दइस भुंगोल, नमन वा इंदिरा गाँधी  का। 
इतिहास के पल  अनमोल ,नमन वा इंदिरा गाँधी का।।  
बान्नाबे हजार पकिस्तानिन से , कनबुड्ढ़ी  लगबाइन 
जे कबौ न खाइन  झोल , नमन वा इंदिरा गाँधी का। ।  

भारत रतन पटेल

आजादी  के दिआ मा,  भरिन  जे  बाती तेल। 
देस  करै  सत  सत नमन ,भारत रतन पटेल।। 
 
पांच सै बांसठ राज मा, अइसा कसिन लगाम। 
सब उनखे  ललकार से ,लिहिन तिरंगा थाम। ।
 
 सिरि  सरदार पटेल कै , सूझ बूझ औ ढंग।
 देख के साहस बीरता ,दुनिया रहि गय दंग।
 
गुरिआ गुरिआ गुहि दिहिन ,देस का साहुत सूत। 
जय  बल्लभ  'सरदार'  जी,  भारत   रतन  सपूत। ।
 
हम भारत बासी करी ,शत शत नमन अभार। 
जब  तक चंदा  सुरिज हें,  नाव चली सरदार।  । 
 

शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

आचार्य रामसखा नामदेव जी


 हमारी ग्राम गिरा रिमही बघेली के "दुष्यंत" आचार्य रामसखा नामदेव जी को "विश्वनाथ सिंह जूदेव स्मृति पुरस्कार" मिलने पर हार्दिक अभिनंदन सादर बधाई। मै व्यक्तिगत रूप से मैं दादा नामदेव जी के लेखन से प्रभावित हूँ। और उनका प्रशंसक हूँ। उनके विवाद और एजेंडा रहित काव्य शैली का मै कायल हूँ। वे बघेली के उन विरले साहित्यकारों में हैं, जो केवल समाज के लिए लिखते हैं,किसी को खुश करने के लिये नहीं। वे किसी सड़ांध बदबूदार विचारधरा के पोषक और पिछलग्गू नहीं हैं।उनके साहित्य में सामाजिक सरोकार , लोक संस्कृति और अपनी माटी की सोंधी सुगंध है। विंध्य और बघेली को ऐसे महान सपूत पर गर्व है। कोटि कोटि बधाई.

नंगई से नहीं

नंगई      से      नहीं          बड़प्पन     से         नापा।
फेर   तुहूं   अपने    सीना    का   छप्पन  से     नापा।।
य  देस    देखे  बइठ   है राजा  नहुष  के  अच्छे   दिन  पै ,
वाखर मतलब या नहीं तुम बाल्मीक का बिरप्पन से नापा। ।  
                 @ हेमराज हंस -भेड़ा मैहर 
 
 
 

बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

बिक्ख उइ देथें

बिक्ख उइ देथें महिपर मा घोर के। 
औ रहपट जड़ रहे हें हाथ जोर के। । 
हंस 

अब ता सगले पुन्न धरें अपना के हीसा मा।

 अब ता  सगले  पुन्न  धरें अपना  के   हीसा  मा। 
तउ   लजाते  हया   देख   मुँह  आपन   सीसा मा।
 
को   फुर  कहै  बताबै   भाई   देस  के   जनता से 
जबकी  हेन उइ हेमै  बितुते   सत्ता के चालीसा मा। । 
 
उइ  पाखण्डी देस के सूरज काही जुगनू लिख दीन्हिन 
लबरी   पोदी  बाला  वा इतिहास  है  हमरे  हीसा मा। । 
 
सिये सिये अस ओंठ हे भइय्या अमरित परब आजादी के 
लागै  जइसा  आंखर- आंखर  बंद हो  बपुरे  मीसा मा। । 
 
सागर  कै अउकात   नहीं पै   नरबा  खुब अभुआय लगे 
हंस  कहा  थें उइ   अगस्त का  बंद है  हमरे  खीसा मा। ।   
                         हेमराज हंस भेड़ा मइहर