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शनिवार, 27 जून 2020
शनिवार, 20 जून 2020
रविवार, 24 मई 2020
बिजली का बिल
दइया नाहर बिजली का बिल मोरे बप्पा रे।
जइसा घर मा खुली होय मिल मोरे बप्पा रे।।
नीक रहें उंई गनी गरीबन काही ता झउखिन
ईं निरदइयन का पाथर दिल मोरे बप्पा रे।।
बुधवार, 22 अप्रैल 2020
फलाने कहाथें
फलाने कहाथें कि रबइया ठीक नहीं।
कुरसी का दोख है कि बइठइया ठीक नहीं।।
अमाबस के रात मा उंइ हेरात हें चांदनी
औ ऊपर से कहा थें कि जोंधइया ठीक नहीं।।
रविवार, 5 अप्रैल 2020
हे माधव मधुसूदन मोहन
हे माधव मधुसूदन मोहन नटवर कृष्ण कन्हैया। पुनः अवतरो आर्य अवनि में आकांक्षित भारत मैया।।
कंस पातकी दंश से अपने करता धर्म विध्वंस।
वसुदेव देवकी सी जनता है त्रस्त यहां यदुवंश।।
शिशुपाल स्वर ताल मिला कर पुनः दे रहा गारी।
पुनः काटिये उसकी गर्दन चक्र सुदर्शन धारी।। वंचक विष के वचन बोल कर बजबा रहा बधैया।।
हे माधव मधुसूदन मोहन नटवर कृष्ण कन्हैया।।
जो वलिष्ट औ शिष्ट बनाती निज विशिष्ट पय से।
वो परम पूज्य गौ माता सहमी बूचड़ के भय से।।
भारत माता सी वंदनीय जो गाय रही गोपाल।
उसी देश की माटी में होती है गऊ हलाल।।
रभा रभा कर तुम्हें टेरती वही तुम्हारी गैया।
हे माधव मधुसूदन........... .....................।।
सड़कों मे लुट रही द्रोपदी करे आप से अर्ज।
कटी अनामिका की पट्टी का पुनः उतारो कर्ज।।
दामों मे बिक गया सुदामा बन वैभव का दास। कर्म योग वैराग्य ज्ञान की आके रचाओ रास।।
फिर से प्रीत पुनीत जगा दो गा के ता ता थैया।।
हे माधव मधुसूदन........................ ......।।
रविवार, 29 मार्च 2020
भेद जलाइए
वेदों को जलाने की बात करते हैं श्रीमान।
जिसने आपको पशु से बनाया इंसान।।
यदि जलाने की ही जिद है तो शौक से जलाइए।
और अपने देश का कचरा हटाइए।।
पर वेदों को नहीं बल्कि भेदों को।।
15 और पचासी के।
कावा और काशी के।।
अल्लाह भगवान का।
गीता और कुरान का।।
आरक्षण के भक्षक का।
शेषनाग और तक्षक का।।
ऊंच और नीच के।
मरु और कीच के।।
विषमता और समता का।
नेता और जनता का।।
अपनी पराई का।
ननद भौजाई का।।
कोलार और धनबाद का।
पूंजी मार्क्स वाद का।।
पूरा देश होगा साथ मे।
हाथ लिए हाथ में।।
जलाने के लिए यहा क ई भाव भेद हैं।
सैकड़ों कुरीतियां हैअगणित लवेद हैं।।
विकृतियाँ हटाना इस देश से जरूरी है।
पर वेद बिना भारत की कल्पना अधूरी है।।
वेदों के बिना अपनी सभ्यता का खात्मा है।
वेद अपने भारत के संस्कृति की आत्मा है।।
हेमराज हंस भेड़ा
६/६/१९९७
शनिवार, 28 मार्च 2020
आजादी कै स्वर्ण जयंती
आजादी कै स्वर्ण जयंती टीबी मा अकबारन मा।
आजादी कै स्वर्ण जयंती दुपहर के अधिआरन मा।।
हमरे देस मा स्वर्ण जयंती सुरसा अस महंगाई कै।
वढना अस जे दल का बदलै वा दल बदलू भाई कै।।
आजादी कै स्वर्ण जयंती ही दिल्ली भोपाल मा।
आजौ हरिआ है गुलाम हेन गांवन के चउपाल मा।।
आजादी कै स्वर्ण जयंती पूंजीवाद कछारन मा।
आजादी कै स्वर्ण जयंती टीबी मा अकबारन मा।।
आजादी कै स्वर्ण जयंती ही अलगू के बखरी मा।
सरकारी योजना बधी है जेखे खूंटा सकरी मा।।
चमचागीरी अभिनंदन के गाये ठुमरी ददरी मा।
झूरझार जे खासा गरजै उजर उजर वा बदरी मा।
लमही बाली मउसी रोबै पंच के अत्याचारन मा।
आजादी कै स्वर्ण जयंती टीबी मा अकबारन मा।।
स्वर्ण जयंती बापू के भुंइ मा ही नाथूराम कै।
स्वर्ण जयंती जयललिता के साथ साथ सुखराम कै।।
स्वर्ण जयंती बोट के खातिर तुष्टीकरण मुकाम कै।।
स्वर्ण जयंती सिद्धांतन के कुर्सी निता लिलाम कै।।
गांधीवाद समाज वाद लगबाये लबरी नारन मा।
आजादी कै स्वर्ण जयंती टीबी मा अकबारन मा।।
आजादी
होरी फगुआ
कइसन खेलै होरी जनता रोरी हबै न रंग।
पानी तक ता दुरघट होइगा कइसा घोटै भंग।।दांती टहिआ कलह दंभ का हिरना कश्यप राजा।
राजनीत होलिका बजाबै लोकतंत्र का बाजा।।
प्रहलाद प्रेम भाईचारा कै नहिआय कहूं उमंग।
महंगाई बन के आई ही हमरे देस मा हुलकी।
तब कइसन के चढै करहिआ कइसन बाजै ढोलकी।।
भूंखे पेट बजै तब कइसा या खंझनी मृदंग।।
फूहर पातर भासन लागैं होरी केर कबीर।
छूंछ योजना कस पिचकारी आश्वासन का अबीर।।
लकालक्क खादी कुरथा मा भ्रष्टाचारी रंग।
कुरसी बादी राजनीत मिल्लस का चढाबै फांसी।
आपन स्वारथ सांटै खातिर पंद्रा अउर पचासी।।
नरदा अपने आप का मानै गंगा केर तरंग।
कहूं बाढ कहु सूखा है कहु महामारी का ग्रास। कहूं ब्याबस्था जन जीबन का कीन्हिस जिंदा लास ।।
जने जने की आंखी भींजीं दुक्ख सोक के संग।।
कइसन खे लै होरी जनता रोरी हबै न रंग।।
हेमराज हंस
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जबसे मूड़े मा कउआ बइठ है। असगुन का लये बउआ बइठ है।। पी यम अबास कै किस्त मिली ही वा खीसा मा डारे पउआ बइठ है।। होइगै येतू मंहग ...