शुक्रवार, 27 मार्च 2020

मैहर 29 मई 1997

मैहर है जहां बिद्या कै देबी बिराजीं मांँ शारद शक्ति भवानी ।
पहिलय पूजा करै नित आल्हा औ देबी के बर से बना बरदानी।। 
मैहर है जहां लिलजी के तट मठ माही सिव हे अउघर दानी।
मैहर है जहां संगम है सुर सरगम कै झंकार सुहानी।। 

पै 29 मई 97 कां हि पतझर घांई निझर गा तै मइहर।
सरकारी गुंडन के गोली औ डंडन से जलिआ कस बाग उजर गा तै मइहर।।
सारद माई का पावन तीरथ मरघट घांई व जल गा तै मैहर। 
सायरन सींटी अन्याय अनीती औ करफू के पांव चहल गा तै मैहर।। 

खून कै नद्दी बही हेन दद्दी पै डोला न दिल्ली भोपाल का आसन। 
गृह मंत्री जी संतरी तक नहि भेजिन न आये हेन दिग्गी प्रदेश के सासन।। 
मैहर है जहां खेली गै ते मजदूर के रक्त से खून कै होरी। 
तड़तड़ गोली धसी जहां सीना मा  मारिन तै निर्दयी अखोरी। ।
लहास बिछाय दइन सड़कन मा लागै नगर बिना धनधोरी।
ईट औ पाथर तक जहा रोयें ते पै न पसीझे उंइ खूनी अघोरी।। 

न्याव के मांगे मा मांग का सेदुर पोछ के होइगा कलंकित मैहर। 
श्रमिकन का जहा खून बहा औ घायल रक्त 
से रंजित मैहर।। 
मानउता किल्लाय उची पै करुना दया से है खंडित मैहर। 
आजौ गुलामी औ डायर हें इतिहास के पन्ना मा अंकित मैहर।। 

29 मई 97 कहि केत्तव का पालन हार गुजर गा। 
केत्तिव राखी भयीं बिन हांथ अनाथ व केत्तेव बचपन कर गा।। 
नहाय गा खून से मैहर पै बरखास न भा एक थाने का गुरगा।। 
अंगना मा जेखे भयीं है कतल अब छान करी वा सारद दुरगा।। 

अहिंसा के नाती हे हिंसक घाती औ उनखर आंखी हिबै बिन पानी। 
जइसन आस करै कोउ कोकास से ओइसय होइगै जांच कहानी।।
 न्याव के हँस का खाय गें कंस   छनाइन बगुला से दूध का पानी। 
'हँस' उरेही कसाई के पाप का जब तक हांथ रही मसियानी।। 
हेमराज हंस 
30,5,1997


चिठ्ठी

आजु दुइ बजे रजधानी से एक ठे चिठ्ठी आई। 
वमै लिखा तै मतदाता का मूर्ख दिवस कै बधाई।। 
जउन  चुनाव जिताया हमही वाखर हयन अभारी। 
हमरव भाव बढे हें खासा मंडी कस तरकारी।। 
जबसे चुन के भेज्या हमही लगा थी लमहर बोली। 
यहै बहाने लोकतन्त्र से हो थी हंसी ठठोली।। 
भुखमरी बेकारी टारैं बाली हमसे कर्या न आस। 
ईं चुनाव के मधुबन माही आहीं सइला रास।। 
टी बी माही देखत्या होइहा उजर भभिस्य के धइना।
हम अंधरन के घर लगबाउब चार चार ठे अइना।। 
बड़े भाग से हम बन पायन गद्दी के अधिकारी। 
दिन बीतै ऊंटी सिमला मा क्लब मा रात गुजारी।। 
संपाती अस सुरिज के रथ कै मन मा ही लउलितिया।
चाहे केत्तव नफरत बाली ठाढ होइ जाय भितिया।। 
जइसा सब का जान्या मान्या ओइसय हमीं समोखा। 
हमरेन दारी खोल त्या हा सिद्धांतन केर झरोखा।। 
हरबिन मिलब आय के तोहसे कइके खाली कोस। 
हम छानी हेन माल पुआ तुम रहा ब्रते परदोष।। 
एक मतदाता पढ के चिठ्ठी चट्टै लिखिन जबाब। 
अपना परंपरा का पाली हम ठगर्रत जाब।। 
पै नोन का कान करा थै कंजर येतू लाज ता राखी। 
भार उचाई हम कांधा मा अपना सेंतै कांखी ।।
हम मान्यन कोकास की नाई ही अपना कै पांत।
दरसन एकता केर मिला थें धन्न अपना का साथ।। 
पै संपाती के लच्छन छ्वाड़ा बन जा गरुड़ जटाऊ। 
येत्तेन माही लोकतंत्र कै बदल जइ जलबाऊ।। @ हेमराज हंस भेड़ा 
12/3/1997

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

हमरे बघेली का खतरा नहि आय

मरे बघेली का खतरा नहि आय। 
वमै कउनौ मेर का अतरा नहि आय।। 
बरेदी के गउंखर से मालिक के बखरी तक
कउनौ बिचइकी का पतरा नहि आय।। 

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

तोखार अस जनाथी

उनखर भाषा सखार अस जनाथी। 
कउनव करतूती तोखार अस जनाथी।। 
जब से हबा मा माहुर घोरिस ही राजनीती। 
जब से भाईचारा का बोखार अस जनाथी।। 
@हेमराज हंस भेड़ा मैहर 

बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

रोटी के निता

आम जनता जूझाथी रोटी के निता। 
औ उंई लड़ि रहे हें डबल रोटी के निता।। 
दिन मा तीन बेर उंई ओन्हा बदला थें
बपुरी जनता तरसा थी लगोटी के निता।। 

शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

संदेसा लइ आबा मधु मास।

मधुमास 


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संदेसा लइ आबा मधु मास। 

माघ तिला तिल बढ़ै फागुन 
घाम लगै जब कुन कुन। 
बहै बयार बसंती गमकत 
भमरा गाबै गुनगुन। । 
फुले गेंदा जुही चमेली 
राई अउर पलास। 

अंगड़ाई लीन्हिस अमराई
 नउती कड़बा करहा। 
आरव पाइस जब होरी का 
बाजै ढोल पहरहा। । 
ओढ़ पियरिया खेतबा लागै 
जस कवित्त अनुप्रास। 


              हमरे गांव मा 


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जब से चुनाव बिख बोगा  भाई हमरे गाँव मा। 
तब से आबै रोज दरोगा भाई हमरे गाँव मा।। 

लगे पढ़ामै जब से गुंडा क ख ग घ अंगा। 
कहिन गुरू जी जान बची ता हमूं नहायन गंगा। । 
द्रोण ढाहन आंसू रो गा  भाई हमरे गाँव  मा। 

लमही बाली मउसी बपुरी न्याव निता फिफिआय। 
दांते रोटी काट काट अलगू जुम्मन बिदुराय। । 
ईसुर पंचाइत  का सो गा  भाई हमरे गाँव  मा। 

खूब मोटान ही फाइल खाके दीन निराश्रित पेनसन। 
चार उपास करे घर माही बुधिआ बइठ ही अनसन। । 
भूंख दाबिस ओखर घोघा भाई हमरे गाँव  मा। 

जब जब पहुंच्यन रपट लिखामै  पहिले पंहुचा फून। 
नेता के चमचा के सार का का कइ  लेइ कानून। । 
बइठे सोच्यै बपुरा जोगा भाई हमरे गांव मा। 

भुइ पूजा कइ  कहि गें उइ की हेइन बनी इदारा। 
ताके ताके  थक गईं आँखी  हिरके नहीं दुबारा। । 
पुनि के अइहै बजाबत चोगा भाई हमरे गांव मा 

होइगें सत्तर साल हंस का डारत डारत बोट। 
तउ लोक है दूबर पातर तंत्र भा  खासा मोट। । 
तउ सादर करी  तरोगा भाई हमरे गाँव  मा। । 

हेमराज हंस भेड़ा  

गुरुवार, 23 जनवरी 2020

पापी लुच्चा तै पाक 

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ओ पापी लुच्‍चा तैं पाक तोही नही आबै लाज,
जउन साज साज घुसपइठ तैं करउते हे।
लगथै कि भूलि गये गिनती हिजड़ी सेना केर,
पुनि के तै वाखर जन संख्‍या गिनबउते हे॥
तोरे इतिहास माही नही कुछु रास भांस ,
हमरे भूंगोल माही पीठ तैं दतउते हे।
अइहे जो तैं कश्‍मीर सेना डारी सीना चीर,
दुइ दारी त देखि चुके पुनि अजमउते हे॥


भारत के मांटी केर वीरता कै परिपाटी,
बांच ले पुरान चाह नये इतिहास का।
भारत के मांटी माही हें जवान वीर शेर,
हेर हेर बीन ल्‍याहैं धरती अक्‍काश का॥
मुंह देखी मेलजोल पीठ पीछ बैर मोल,
तोर दोगली य चाल दुअरा विनाश का।
अरे दीदी जो पिआये दूध करदे एलान जुद्व,
जिंदय मां बनबा ले कब्र अपने लहास का॥


हिमालय से ज्‍वालामुखी फूट के निकर परी,
सह पइहे आंच तै न हिन्‍दुस्‍तानी वीर के।
वा दारी त दुर्गा रहीं य दारी हें महाकाल,
भुट्‌टो अस होइ हाल तोरव त अखीर के॥
रे ढीठ नीच मान बात कर न तै उत्‍पात,
भारतीय भूंगोल मांही सरहद तीर के।
जब तक सुरिज औ चन्‍दा हें अकास मांही,
धरती मां लहरइ तिरंगा कश्‍मीर के ॥
     @हेमराज हंस भेड़ा 
          9575287490