भारत जीता बिश्व कप, गदगद पूरा देस ।
हम काहू से कम नहीं, दुनिआ का संदेस।।
हेमराज हंस
मैहर रियासत के राजा बृजनाथ सिंह जू देव (जन्म 1896 – मृत्यु 1968) का 16 दिसंबर 1911 में राज तिलक हुआ। वे प्रजा पालक धर्मनिष्ट न्यायवादी राजा थे। उन्ही के शासन कल में मैहर में एक तपोनिष्ट सिद्ध संत प्रातः स्मरणीय स्वामी नीलकंठ जी महराज (जिनका आश्रम अब भी ओइला में है ) भी रहते थे। उस समय मैहर के भदनपुर पहाड़ की घाटी में कल्लू डाकू का बहुत अत्याचार था ,लूटपाट हत्या जैसे जघन्य अपराध करके जन मानस को भयभीत कर रखा था। जनता त्राहि त्राहि कर रही थी। जब खबर किले तक पहुंची तो ,राजा ने जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए डाकू के ऊपर 500/ का ईनाम घोषित कर दिया। परिणाम स्वरुप बदेरा गाँव के साहसी चौबे लोगों ने उसे जिन्दा पकड़ कर राजा को सौप दिया। राजा की कचहरी में न्याय प्रकिया का पालन करते हुए अदालत ने कल्लू डाकू को फांसी की सजा सुनाई । फांसी की खबर पूरे मइहर राज्य में फ़ैल गईं। जनता उराव मनाने लगी। 16 जनबरी 1912 को विष्णुसागर में फांसी देने का समय निर्धारित। हुआ। फांसी के एक दिन पहले कल्लू डाकू की पत्नी रोते हुये प्राणदान की याचना लेकर राज दरवार गई किन्तु राजा ने उसकी याचना स्वीकार नहीं की। तब उसे किसी ने सलाह दी की वह स्वामी नीलकंठ जी के पास अपनी बिनती सुनाये। मैहर के राजा उनकी बात नहीं टालेंगे। उसने वैसा ही किया। ओइला आश्रम में महिला को सम्मान सहित जलपान भोजन कराया गया। इसके बाद स्वामी नीलकंठ महराज जी ने महिला के रुदन से द्रवित होकर उसे वचन दे दिया की कल्लू को फांसी नहीं होगी,भले उम्र कैद हो जाय। और स्वामी जी रात के 12 बजे किला पहुँच कर आपात काल बाला घण्टा बजाने लगे।घंटनाद सुनकर महाराज बृजनाथ सिंह जू किले से निकल कर ड्योढ़ी पर आकर देखा तो स्वामी जी को देख कर अवाक् रह गये। उनके चरणों में दण्डवत प्रणाम कर हाथ जोड़ के पूंछने लगे ,बोले स्वामी जी आधीरात को कौन सी समस्या आ गई। सब कुशल तो है न ? आपने किसी सेवादार को नहीं भेजा स्वयं दर्शन देने आ गए। आदेश कीजिए क्या अड़चन है। स्वामी जी ने कहा राजन बात ही कुछ ऐसी है की मुझे स्वयं आना पडा। बात ये है की आप कल जिसे फांसी देने बाले हैं ,मै उसका प्राणदान मांगने आया हूँ। आशा करता हूँ ,आप मुझे निराश नहीं करेंगे। राजा ने कहा स्वामी जी शायद आप को ज्ञात न हो वो कल्लू डाकू कितना दुर्दांत अपराधी है। पचासों हत्याएं ,सैकड़ों लूटपाट का दोषी है ,मैहर की जनता उससे त्रस्त थी ,बड़ी मुश्किल वो पकड़ में आया है। अदालत ने उसे मृत्युदंड की सजा दी है। क्या यह जानकर भी आप उसे बचाने का प्रयास करेंगे ? स्वामी जी ने कहा राजन मै चाहता हूँ की फांसी की जगह उसे उम्र कैद दे जाय। राजा ने हाथ जोड़ कर कहा ,स्वामी जी आप छमा करें ,देश की न्यायिक प्रणाली में हस्तक्षेप उचित नहीं है। यदि वह कोई संत या ब्राह्मण होता तो विचारणीय था। किन्तु उस दुर्दांत के अपराध के अनुपात में ही सजा दी गई है। आप कोई और सेवा करने का अवसर प्रदान करें। स्वामी जी क्रोधित हो गये ,और कहा की यदि मेरी बात नहीं मानी गयी तो मै तुम्हारे राज्य का अन्न जल नहीं ग्रहण करूँ गा। इतना कह कर अपने आश्रम आ गये। सुबह १० बजे कल्लू डाकू को फांसी दे दी गई। स्वामी जी मैहर त्यागकर उंचेहरा राज्य की सीमा में गणेश घाटी में रहने लगे।नागौद के राजा साहेब ने वहां रामपुर पाठा मेंआश्रम बनबा दिया। स्वामी नीलकंठ जी वही रहकर तप करंने लगे।
पीपरबाह से देस तक, गूंज रहा साहित्य।
कोट बधाई जनम कै, रविशंकर आदित्य।।
सहज सरल निरछल हिदय, जय हो बानी पूत।
देस बिदेस प्रदेस मा, जस खुब मिलै अकूत।।
जब मंचन मा बंटत है, सब्दन केर गड़ास।
खिलखिलात बांटत फिरैं, रबिशंकर जी हास। ।
हंस
कहूं गिर गै चिन्हारी नहात बिरिआ।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
बिसरि गयन अपना वा प्रेम का।
जइसन बिस्वा मित्र - मेनका ।।
हमीं आजव लगी अपना पिरिया।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
पहिले सोची अपना मन मा।
मृग मारय आयन तै बन मा।।
पानी पिअंय गयन तै झिरिआ।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
अपना भयन तै हमसे मोहित।
साक्षी हैं रिषि कण्व पुरोहित।।
जब डारि के जयमाला बन्यन तिरिया।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
सुन के सकुन्तला कै बतिया।
धड़कय लाग दुस्यंत कै छतिया।।
तबै नैनन से ढुरकय लगी गुरिया।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
हेमराज हंस
बन बिरबा का धरम से, पुरखा गे तें जोड़।
ता पखंड के नाव से , हम सब दीन्हयन छोड़। ।
हम सब दीन्हयन छोड़, बरा औ पीपर पूजब।
नास्तिक बन के सिख्यन सरग मा होरा भूजब।।
तड़प रहें हे मनई जीव पसु पंछी किरबा।
चला लउट पुन चली पूजय काही बन बिरबा।।
हेमराज हंस
कुच्छ न पूछा हाल तिवारी।
निगबर लइ डारिन पटबारी।
आपन खसरा बताइन घर मा।
कब्ज़ा कर लइन बीडी शर्मा।।
वासर भइंस लिहिस बइठान
उइ अब मार रहें सिस कारी।
कुच्छ न ---------------------
यम पी मा चला न खटाखट्ट ।
होइगे निगबर सफाचट्ट।।
उनहिन का भा चित्त पट्ट।
इनखर चली न लम्मरदारी।
कुच्छ न ----------------
अइसा बजा जुझारू बाजा।
पुनि के निपट गें दिग्गी राजा।।
बिंध मालबा औ निमाड़ तक
परे उतान हमय दरबारी।
कुच्छ न ----------------
गहकी बागैं बिल्लिआन।
कहाँ ही मुहाब्बत केर दुकान। ।
शटर बंद जनता कइ दीन्हिस
पुन पलुहाई पुन पुचकारी।
कुच्छ न पूछा हाल तिवारी।
हेमराज हंस
अपने रिमही बघेली के अनमोल रतन।
जिनही सुने से मिट जाथी तन मन कै थकन।।
दुनहु जन का बधाई शुभ कामना ही
बिन्ध्य के कंठ हार बंदन औ अभिनंदन।।
जब बानी औ शब्द मिल,. होंय तपिस्या लीन।
तब कवि राम नरेस अस, मनई बनै शालीन।।
शारद के बरदान अस , हैं नरेश श्री मान ।
जिनखे हाथे मा पहुँच, सम्मानित सम्मान।
पयसुन्नी अस सब्द का, जे पूजय दिनरात।
कबिता उनखे निता ही, जीबन कै जरजात।।
गीत ग़ज़ल कै आरती , दोहा कविता छंद।
आंखर आंखर आचमन, अंतस का आनंद।।
शब्द ब्रह्म का रुप है, वर्ण धरै जब भेष।
मइहर मा एक संत हैं, पंडित रामनरेश।।
लगय कटाये घाट अस, सब्दन का लालित्य।
मैहर मा चमकत रहैं, राम नरेश आदित्य।।
गाड़ी का पंचर भा चक्का।
नाचय लागें चोर उचक्का।।
कहूं पायगें गें एकठे टोरबा
लगें सबूत देखामय छक्का। ।
जे हें फेल उइ हे उराव मा
भा जे पास वा हक्का बक्का।।
अजिआउरे का थाका पाइन
थरह रहें थइली मा मक्का।।
उनखी बातैं आला टप्पू
सुनसुन के बिदुराथें कक्का। ।
देखि रहें जे कबरे सपना
हंस खुली उनहूँ का जक्का। ।
हेमराज हंस
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टोरबा = बालक
अजिआउरे = दादी का मायका
थाका = निःसंतान की संपत्ति
थरह = पौधशाला
आला टप्पू = बिना अनुभव, बिना सोचे-विचारे,
कबरे = रंगीन
जक्का = विवेकशून्य स्थिति,
लेत रहें जे थान के, लम्बाई कै नाप।
अर्ज देख लोटय लगा,उनखे छाती सांप।।
भला बताई आप से, कउन ही आपन सउंज।
अपना बोतल का पियी, हम पी पानी अउंज।।
न मात्रा का ज्ञान है, न हम जानी वर्ण।
पारस के छुइ दये से, लोहा होइगा स्वर्ण।।
उनखे झंडा के तरी, सब्द का सीतल छाँव।।
सब्द का सीतल छाँव मान सब लेखनी काही।
चाह अडारन होय, चाह अनमोल सिपाही।।
लोकरत्न कक्का लगैं ,अमल्लक रतन छटीमा।
आजु हमय सहनाव अस कक्का जी औ रीमा।।