मंगलवार, 31 मार्च 2015

कुंडलिया 

हंस   देख   चउआन   है नये नये परपंच। 
भारी बहुमत जीत के मिलै न सत्ता संच। । 
मिलै  न  सत्ता  संच   उड़  रही   खिल्ली। 
एक एक कई टूट रही ''बहरी ''कै तिल्ली। । 
जनता बपुरी सहि रही राजनीत का दंश। 
नंगदाय का देख के हक्का बक्का हंस। । 
                      हेमराज हंस 

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