कुंडलिया
हंस देख चउआन है नये नये परपंच।
भारी बहुमत जीत के मिलै न सत्ता संच। ।
मिलै न सत्ता संच उड़ रही खिल्ली।
एक एक कई टूट रही ''बहरी ''कै तिल्ली। ।
जनता बपुरी सहि रही राजनीत का दंश।
नंगदाय का देख के हक्का बक्का हंस। ।
हेमराज हंस
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