पूरी दुनिया कर रही, राम राम का जाप।
दृश्य देख कुछ जन दुखी ,उनखे लोटय सांप।।
अपना का बधाई अभिनंदन।
अबध बिराजे श्री रधुनंदन।।
पूर देस डूबा उराव मा
नैनन निरख्यन ऐतिहासिक छन ।।
हेमराज हंस
शिव मंत्रों का संग्रह
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ॐ चंद्रमौलेश्वर नम:।।
ॐ नमः शिवाय।
ॐ नमो भगवते रूद्राय |
ॐ नमः शिवाय व्योमकेश्वराय”
“ॐ हं हं सह:”
ॐ नमः शिवाय शान्ताय”
ॐ शंकराय नमः”
“ॐ पार्वतीपतये नमः”
ॐ अघोराय नम:, ॐ शर्वाय नम:, ॐ विरूपाक्षाय नम:, ॐ विश्वरूपिणे नम:,
ॐ त्र्यम्बकाय नम:, ॐ कपर्दिने नम:, ॐ भैरवाय नम:,
ॐ शूलपाणये नम:, ॐ ईशानाय नम:, ॐ महेश्वराय नम:
ॐ ह्रीं ह्रौं नमः शिवाय।। ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
शिव शंकर जी का शाबर मंत्र -
शंकर शंकर काशी के बासी अरज हमारी दरश दिखाओ गौरा संग आओ दोनों सुत संग लावो ,
दलिद्र काटो रोग काटो शत्रु नाशो भण्डार भरो न करो तो तोको राजाराम की दुहाई
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कर्पूरगौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्रहारम
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवन भवानीसहितं नमामि।
ॐकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिनः।
कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः।।
ॐ सूर्यचन्द्राग्निनेत्राय नमः कैलासवासिने ।
सच्चिदानन्दरूपाय प्रमथेशाय मङ्गलम् ॥
वन्दे देवम उमापतिमं सुरगुरुं वन्दे जगात्कारानाम,
वन्दे पन्नगभूषणं मृग्धरमं वन्दे पशुनां पतिम् .
वन्दे सूर्या शशांक वह्रींनयन वन्दे मुकुन्द प्रियम
वन्दे भक्तजनाच्क्ष्यम च वरदम् वन्दे शिवम् शंकरम्।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।
कर्चरणकृतं वा कायजं कर्मजं वा श्रवणन्यांजं वा मांससं वा पराधम |
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमास्व जय जय करुणाअबधे श्री महादेव शम्भो ||
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
"मृत्युंजय रुद्राय नीलकंठाय शंभवे
अमृतेशाय सर्वाय महादेवाय ते नमः"
नमस्ते भगवान रुद्र भास्करामित तेजसे।
नमो भवाय देवाय रसायाम्बुमयात्मने।।
आदित्य सोम वरुणानिलसेविताय यज्ञाग्निहोत्रवरधूमनिकेतनाय।
ऋक्सामवेदमुनिभि: स्तुतिसंयुताय गोपाय गोपनमिताय नम: शिवाय।।
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।
मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम: शिवाय।।
लम्बत्स पिङ्गल जटा मुकुटोत्कटाय दंष्ट्राकरालविकटोत्कटभैरवाय।
व्याघ्राजिनाम्बरधराय मनोहराय त्रिलोकनाथनमिताय नम: शिवाय।।
सदुपायकथास्वपण्डितो हृदये दु:खशरेण खण्डित:।
शशिखण्डमण्डनं शरणं यामि शरण्यमीरम्।
देवगणार्चितसेवितलिंगम् भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।
देवमुनिप्रवरार्चितलिंगम् कामदहं करुणाकरलिंगम्।
रावणदर्पविनाशनलिंगम् तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।
करचरण कृतं वा क्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितम विहितं वा सर्वमे तत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो।।
श्वेतदेहाय रुद्राय श्वेतगंगाधराय च।
श्वेतभस्माङ्गरागाय श्वेतस्वरूपिणे नमः।।
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श्री सदाशिव ध्यान
ऊं डिं डिं डिंकत डिम्ब डिम्ब डमरु,पाणौ सदा यस्य वै ।
फुं फुं फुंकत सर्पजाल हृदयं,घं घं च घण्टा रवम् ॥
वं वं वंकत वम्ब वम्ब वहनं,कारुण्य पुण्यात् परम्॥
भं भं भंकत भम्ब भम्ब नयनं,ध्यायेत् शिवं शंकरम्॥
यावत् तोय धरा धरा धर धरा ,धारा धरा भूधरा।।
यावत् चारू सुचारू चारू चमरं, चामीकरं चामरं।।
यावत् रावण राम राम रमणं, रामायणे श्रुयताम्।
तावत् भोग विभोग भोगमतुलम् यो गायते नित्यस:॥
यस्याग्रे द्राट द्राट द्रुट द्रुट ममलं ,टंट टंट टंटटम् ।
तैलं तैलं तु तैलं खुखु खुखु खुखुमं ,खंख खंख सखंखम्॥
डंस डंस डुडंस डुहि चकितं, भूपकं भूय नालम्।।
ध्यायस्ते विप्रगाहे सवसति सवलः पातु वः चंद्रचूडः॥
गात्रं भस्मसितं सितं च हसितं हस्ते कपालं सितम्।।
खट्वांग च सितं सितश्च भृषभः, कर्णेसिते कुण्डले।।
गंगाफनेसिता जटापशुपतेश्चनद्रः सितो मुर्धनी॥
सो5यं सर्वसितो ददातु विभवं, पापक्षयं सर्वदा॥
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नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम:शिवाय।।1।।
मंदाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथ महेश्वराय।
मण्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम:शिवाय।।2।।
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्रीनीलकण्ठाय बृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम:शिवाय।।3।।
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्यमुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम:शिवाय।।4।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम:शिवाय।।5।।
पञ्चाक्षरिमदं पुण्यं य: पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।6।।
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सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रिशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोमकारममलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारूकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥
अन्यथा शरणम् नाऽस्ति, त्वमेव शरणम् मम्।
तस्मात्कारूण भावेन्, रक्ष माम् महेश्वर:॥
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शिव आवाहन मंत्र
ॐ मृत्युंजय परेशान जगदाभयनाशन।
तव ध्यानेन देवेश मृत्युप्राप्नोति जीवती।।
वन्दे ईशान देवाय नमस्तस्मै पिनाकिने।
नमस्तस्मै भगवते कैलासाचल वासिने।
आदिमध्यांत रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे।।
त्र्यंबकाय नमस्तुभ्यं पंचस्याय नमोनमः।
नमोब्रह्मेन्द्र रूपाय मृत्युनाशं करोतु मे।।
नमो दोर्दण्डचापाय मम मृत्युम् विनाशय।।
देवं मृत्युविनाशनं भयहरं साम्राज्य मुक्ति प्रदम्।
नमोर्धेन्दु स्वरूपाय नमो दिग्वसनाय च।
नमो भक्तार्ति हन्त्रे च मम मृत्युं विनाशय।।
अज्ञानान्धकनाशनं शुभकरं विध्यासु सौख्य प्रदम्।
नाना भूतगणान्वितं दिवि पदैः देवैः सदा सेवितम्।।
सर्व सर्वपति महेश्वर हरं मृत्युंजय भावये।।
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लघुरुद्राभिषेक
ॐ सर्वदेवेभ्यो नम :
ॐ नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च।
पशुनां पतये नित्यं उग्राय च कपर्दिने॥1॥
महादेवाय भीमाय त्र्यंबकाय शिवाय च।
इशानाय मखन्घाय नमस्ते मखघाति ने॥2॥
कुमार गुरवे नित्यं नील ग्रीवाय वेधसे।
पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा।
विलोहिताय धूम्राय व्याधिने नपराजिते॥3॥
नित्यं नील शीखंडाय शूलिने दिव्य चक्षुषे।
हन्त्रे गोप्त्रे त्रिनेत्राय व्याधाय च सुरेतसे॥4॥
अचिंत्यायाम्बिकाभर्त्रे सर्व देवस्तुताय च।
वृषभध्वजाय मुंडाय जटिने ब्रह्मचारिणे॥5॥
तप्यमानाय सलिले ब्रह्मण्यायाजिताय च।
विश्र्वात्मने विश्र्वसृजे विश्र्वमावृत्य तिष्टते॥6॥
नमो नमस्ते सत्याय भूतानां प्रभवे नमः।
पंचवक्त्राय शर्वाय शंकाराय शिवाय च॥7॥
नमोस्तु वाचस्पतये प्रजानां पतये नमः।
नमो विश्र्वस्य पतये महतां पतये नमः॥8॥
नमः सहस्त्र शीर्षाय सहस्त्र भुज मन्यथे।
सहस्त्र नेत्र पादाय नमो संख्येय कर्मणे॥9॥
नमो हिरण्य वर्णाय हिरण्य क्वचाय च।
भक्तानुकंपिने नित्यं सिध्यतां नो वरः प्रभो॥10॥
एवं स्तुत्वा महादेवं वासुदेवः सहार्जुनः।
प्रसादयामास भवं तदा शस्त्रोप लब्धये॥11॥
॥ इति शुभम्॥
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति। करों दूर क्लेश।।कुबेर गणेश मंत्र ||
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।।
आवाहन के बाद आपको गणेज जी की प्राण प्रतिष्ठा करनी होगी और इस दौरान आपको यह मंत्र दोहराना होगा।
अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन।।
अब आप गणेश जी को आसान पर बैठा सकती हैं और इस दौरान आप यह मंत्र दोहराएं।
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम।
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।।
गणेश जी की प्रतिमा को स्नान करवाएं। साथ ही यह मंत्र दोहराएं।
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:।
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे।।
पहले दूध् से स्नान कराएं और यह मंत्र दोहराएं।
कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं।।
दही से स्नान कराते वक्त यह मंत्र दोहराएं
पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं।
ध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां।।
घी से स्नान कराते वक्त यह मंत्र दोहराएं।
नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।।
शहद से स्नान करते वक्त यह मंत्र दोहराएं।
तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।
पंचामृत से स्नान कराते वक्त यह मंत्र दोहराएं।
पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।
आखिर में शुद्ध जल से स्नान कराएं और यह मंत्र दोहराएं।
मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम।
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।
जब आप गणेश जी की प्रतिमा को स्नान करवा लें उसके बाद आपको उनको वस्त्र पहनाने होंगे और वक्त आपको यह मंत्र दोहराना होगा।
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां।।
गणेश जी को वस्त्र पहनाने के बाद जनेऊ जरूर पहनाएं और उस दौरान यह मंत्र दोहराएं।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||
भगवान गणेंश की माथे पर जब आप चंदन चढ़ाएं तब आपको यह मंत्र बोलना होगा।
रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम।
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम।।
इसके बाद रोली चढ़ाते वक्त यह मंत्र दोहराएं।
कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम ।
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्:।।
रोली के बाद सिंदूर चढ़ाएं और यह मंत्र दोहराएं।
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां।।
भगवान गणेश को चावल चढ़ाते वक्त यह मंत्र दोहराएं।
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः।
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः।।
इसके बाद आपको गणेश प्रतिमा को पुष्प चढ़ाने होंगे और साथ ही यह मंत्र दोहराना होगा।
पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै:।
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां।।
भगवान शिव की तरह गणेश प्रतिमा पर भी बेल पत्र चढ़ाएं और यह मंत्र दोहराएं।
त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै: शुभै:।
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर :।।
भगवान गणेश को दूर्वा अतिप्रिय है। इसे चढ़ाते वक्त यह मंत्र जरूर दोहराएं।
त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि।
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव।।
इन सबके बाद भगवान गणेश को आभूषण पहनाएं और यह मंत्र दोहराएं।
अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान।
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर:।।
सुगंध तेल चढ़ाएं- चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि:। वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां।।
धूप दिखाए - वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम :। आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां।।
दीप दिखाएं- आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया। दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम।।
मिठाई अर्पण करें- शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम। उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां।।
आरती करें- चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च। त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम।।
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः ।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः ॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः ।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित् ।
ॐ गं नमः
गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:
ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा !
गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक:।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम्।।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
वन्दहुं विनायक, विधि-विधायक, ऋद्धि-सिद्धि प्रदायकम् |
गजकर्ण, लम्बोदर, गजानन, वक्रतुण्ड, सुनायकम् ||
श्री एकदन्त, विकट, उमासुत, भालचन्द्र भजामिहम |
विघ्नेश, सुख-लाभेश, गणपति, श्री गणेश नमामिहम ||
अमेयाय च हेरम्ब परशुधारकाय ते ।
मूषक वाहनायैव विश्वेशाय नमो नमः ॥
एकदन्ताय शुद्घाय सुमुखाय नमो नमः ।
प्रपन्न जनपालाय प्रणतार्ति विनाशिने ॥
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दंती प्रचोदयात।।
ॐ गं गणपति रूप श्री पद्मादेव्यै नमः
मम लक्ष्मी प्राप्ति कुरु कुरु स्वाहा
ॐ श्रीम गम सौभाग्य गणपतये।
वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥
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गणेश जी को भोग लगाने का मंत्र(
शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||
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ॐ स्मरामि देव-देवेश।वक्र-तुण्डं महा-बलम्।
षडक्षरं कृपा-सिन्धु, नमामि ऋण-मुक्तये।।1।।
महा-गणपतिं देवं, महा-सत्त्वं महा-बलम्।
महा-विघ्न-हरं सौम्यं, नमामि ऋण-मुक्तये।।2।।
एकाक्षरं एक-दन्तं, एक-ब्रह्म सनातनम्।
एकमेवाद्वितीयं च, नमामि ऋण-मुक्तये।।3।।
शुक्लाम्बरं शुक्ल-वर्णं, शुक्ल-गन्धानुलेपनम्।
सर्व-शुक्ल-मयं देवं, नमामि ऋण-मुक्तये।।4।।
रक्ताम्बरं रक्त-वर्णं, रक्त-गन्धानुलेपनम्।
रक्त-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।5।।
कृष्णाम्बरं कृष्ण-वर्णं, कृष्ण-गन्धानुलेपनम्।
कृष्ण-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।6।।
पीताम्बरं पीत-वर्णं, पीत-गन्धानुलेपनम्।
पीत-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।7।।
नीलाम्बरं नील-वर्णं, नील-गन्धानुलेपनम्।
नील-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।8।।
धूम्राम्बरं धूम्र-वर्णं, धूम्र-गन्धानुलेपनम्।
धूम्र-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।9।।
सर्वाम्बरं सर्व-वर्णं, सर्व-गन्धानुलेपनम्।
सर्व-पुष्पै पूज्यमानं, नमामि ऋण-मुक्तये।।10।।
भद्र-जातं च रुपं च, पाशांकुश-धरं शुभम्।
सर्व-विघ्न-हरं देवं, नमामि ऋण-मुक्तये।।11।।
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॥ ध्यान ॥
ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम् ।
ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम् ॥
॥ मूल-पाठ ॥
सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजित: फल-सिद्धए ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
शशिना कान्ति-वृद्धयर्थं पूजितो गण-नायक: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
पालनाय च तपसां विश्वामित्रेण पूजित: ।
सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे ॥
इदं त्वृण-हर-स्तोत्रं तीव्र-दारिद्र्य-नाशनं,
एक-वारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं सामहित: ।
दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेर-समतां व्रजेत् ॥
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ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तनि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।ते ह नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा: ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने।नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।स मस कामान् काम कामाय मह्यं।कामेश्र्वरो वैश्रवणो ददातु कुबेराय वैश्रवणाय।महाराजाय नम: ।
ॐ स्वस्ति, साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यंवैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं ।समन्तपर्यायीस्यात् सार्वभौमः सार्वायुषः आन्तादापरार्धात् ।पृथीव्यै समुद्रपर्यंताया एकराळ इति ॥
ॐ तदप्येषः श्लोकोभिगीतो।मरुतः परिवेष्टारो मरुतस्यावसन् गृहे।आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ॥॥ मंत्रपुष्पांजली समर्पयामि ॥
एकदंतायविघ्महे वक्रतुण्डाय धीमहि ।तन्नोदंती प्रचोदयात् ।मंत्रपुष्पांजली समर्पयामि ।।