गरीब केर ठंडी
गरीब केर ठंडी
गरीब केर ठंडी गरीब केर ठंडी।
सथरी बिछी ता लागय पहला का गुलगुल गद्दा।
पउढ़य घरे भरे के , भाई बहिन अउ दद्दा। ।
आबा थी निकही निदिआ बे गोली बे बरंडी।
दिन उअतै घाम तापै चउरा मा मारे पलथी।
बिटिआ लाग रांधै नए चाउर कै गोलहती। ।
चुल्हबा मा आंच देथी धंधोल बिनिआ कंडी।
दुई होय कि रुई होय कहि के मुस्की मारै भउजी।
कांपा थें तन के हाड़ा जाड़ा किहे मन मउजी। ।
तउअव गरीबी खुश ही जस जुद्ध मा शिखंडी।
जांय खै करैं मजूरी ही कड़कड़ात ठाही।
हांकै का है अटाला , औ भूंख कै गंडाही। ।
हम जाड़ लइके बइठब ता कइसा चढ़ी हंडी।
करजा का खाब है अउ पयार केर तापब।
ओन्हा नहीं अलबुद्दा जाड़े मा थरथर काँपब। ।
गरीबी कै नामूजी जाड़ा करइ घमण्डी। ।
हेमराज हंस
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