बुधवार, 3 जनवरी 2024

गरीब केर ठंडी

गरीब केर ठंडी

                         गरीब केर ठंडी

 गरीब केर ठंडी          गरीब केर ठंडी। 

सथरी बिछी ता लागय  पहला  का गुलगुल गद्दा। 
पउढ़य   घरे   भरे   के , भाई  बहिन  अउ  दद्दा। । 
आबा थी निकही  निदिआ  बे  गोली  बे  बरंडी। 

दिन उअतै घाम तापै चउरा मा मारे पलथी। 
बिटिआ लाग रांधै नए चाउर कै गोलहती। । 
चुल्हबा  मा आंच देथी धंधोल बिनिआ कंडी। 

दुई होय कि रुई होय कहि के मुस्की मारै भउजी। 
कांपा थें तन के हाड़ा  जाड़ा  किहे  मन मउजी। । 
तउअव गरीबी खुश ही जस जुद्ध  मा शिखंडी। 

जांय खै  करैं मजूरी  ही कड़कड़ात  ठाही। 
हांकै  का है अटाला , औ भूंख कै गंडाही। । 
हम जाड़  लइके  बइठब ता कइसा चढ़ी हंडी। 

करजा  का  खाब  है  अउ  पयार  केर तापब। 
ओन्हा  नहीं अलबुद्दा जाड़े मा थरथर काँपब। । 
गरीबी  कै  नामूजी  जाड़ा  करइ    घमण्डी। ।  
हेमराज हंस 

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