मंगलवार, 30 अगस्त 2016

bagheli kavita रिमझिम रिमझिम मेंघा बरखै @कवि हेमराज हंस मैहर

पावस कई रीत आई 


रिमझिम रिमझिम मेंघा बरखै
थिरकि रही पुरवाई।
धरती करै सिगार सोरहौ
पावस कै रित आई॥
भरे डवाडब ताल तलइया
कहूं चढी ही बाढ।
एकव वात न लेय किसनमां
जब से लगा अषाढ॥
बोमैं बराहैं नीदै गोड़य
करैं नीक खेतवाई।
रिमझिम.........................
भउजी बइठे कजरी गउतीं
भाई आल्‍हा बांचै।
टिहुनी भर ब्‍वादा मां
गाँवन की चउपालै नाचै॥
करय पपीहा गोइड़हरे मां
स्‍वाती केर तकाई।
रिमझिम.......................
गउचरनै सब जोतर गयीं
ही रखड़उनी मां बखरी ।
धधी सार मां गइया रोउत
खूब बमातीं बपुरी॥
‘‘मइया धेनु चरामै जइहौं''
मचले किशन कन्‍हाई॥
रिम झिम..........................
चउगानय अतिक्रमण लीलगा
लगी गली मां बारी।
मुड़हर तक जब पानी भरिगा
रोमय लाग ओसारी॥
कहिन फलाने खूब फली
पटवारी कर मिताई।
रिमझिम.................
चुंअय लाग छत स्‍कूलन कै
दइव बजाबै ढोल।
एक दउंगरै मां लागत कै
खुलि गै सगली पोल॥
विद्या के मंदिर मां टोरबा
भीजत करै पढाई।
रिमझिम.......................
जब उंइ पउलै लगें म्‍यांड़ ता
लाग खेत का सदमा।
दोउ परोसी लपटें झपटे
हीठै लाग मुकदमा॥
सरसेवाद त कुछू न निकला
HEMRAJ HANS
कैप्शन जोड़ें
करिन वकील लुटाई।
रिमझिम...........................

@कवि हेमराज हंस  मैहर 

bagheli kavita अम्‍मा!हमहूं करब पढाई। kavi hemraj hans

अम्मा !हमहूँ करब पढ़ाई 

अम्‍मा!हमहूं करब पढाई।
हम न करब घर कै गोरूआरू
औ न चराउब गइया।
कह दद्‌दा से जांय ख्‍यात
औ ताकै खुदै चिरइया॥
हम न करब खेतबाई।
अम्‍मा.........................
आज गुरूजी कहिगें हमसे
तु आपन नाव लिखा लया।
पढ लिख के हुशिआर बना
औ किस्‍मत खुदै बना ल्‍या॥
येहिन मां हिबै भलाई।
अम्‍मा..........................
गिनती पढबै पढब दूनिया
बाकी जोड़ ककहरा।
अच्‍छर अच्‍छर जोड़.जोड़ के
बांचब ठहरा ठहरा॥
औ हम सिखब इकाई दहाई।
अम्‍मा.............................
हम न खेलब आंटी डंडा
औ न चिरंगा धूर।
पढब लिखब त विद्या माई
द्‌याहैं हमी शहूर॥
करब देस केर सेवकाई।
अम्‍मा ......................
बहुटा गहन कइ अंउठा
लगा के दद्‌दा कढैं खीस।
देंय बयालिस रूपिया बेउहर
लिखै चार सौ बीस ॥
ल्‍याखा ल्‍याबै पाई पाई।
अम्‍मा हमहूं करब पढाई॥
@कवि हेमराज हंस  9575287490 

सोमवार, 29 अगस्त 2016

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita अब तुमहूं त कुछ करा खूस। hemraj h...

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita अब तुमहूं त कुछ करा खूस। hemraj h...: करा खूस  उंइ कहिन आज हमसे घर मां, अब तुमहूं त कुछ करा खूस। देखत्‍या है उनही तिपैं ज्‍याठ, तुम हया जड़ाने मांघ पूस॥ अरे कहूं रोप एकठे बिरब...

RIMHI KAVITA य मनई से वफादार है हमरे देस का कुत्‍ता॥

RIMHI KAVITAरिमही कविता 


एक रोज गदहा काका से कहिस गदहिया काकी।
पकिगा प्‍याट य भारा ढ़ोबत परै भाग मां चाकी॥
हमही परै अजार य  होइ जाय कउनौ अनहोनी।
इसुर य तन लइके  हमही  देय मनई कै जोनी।
यतना सुनतै  गदहा काकू  लगें  खूब अनखांय।
कहिन शनीचर तोहइ चढा है औ चटके ही बाय॥
येहिन से तुम मांगि रह्‌या है वा मनई का क्‍वारा।
जउन बरूद के गड्‌ड मां बइठे होइन भूंजै होरा॥
जे अपने स्‍वारथ मां ढड़कै मिरजापुर कस लोटिया।
पानी पी के चट्‌टय फ्‌ोरै जे पउसरा कै मेटिया॥
जे जात धरम भांषा बोली मां करबाउथें जंउहर।
जे नेम प्रेम भाईचारा से मिलैं न कबहूं जिवभर॥
जे ईटा गारा निता बहामै अपने भाई का रक्‍त।
भले पीलिया केर बेजरहा अस्‍पताल मां मरै बेसक्‍त॥
रक्‍तदान न द्‌याहै ओही भले सड़क का सींचै।
जउन बंदा भगतन से दइअव केर कर्‌याजा हीचै॥
अइसा रूक्ष दुइ गोड़ा गड़इता कै मगत्‍या तुम जोनी।
जे मजूर के खून पसीना कै भख लेय करोनी॥
मनई से नीक ता हमरै जात ही सुना गदहिया रानी।
चुहकै नही अरक्षण कोल्‍हू प्रतिभा केर जमानी॥
लख्‍यन लालू के ढंग का देखे रंझ ही तोहरे जिव का।
पै हम पशु पच्‍छिन के खातिर जीतीं अबै मेंनका॥
तुम गुलाब का सपन न द्‌याखा बना निराला केर कुकुरमुत्‍ता।
य मनई  से वफादार है  हमरे देस का कुत्‍ता॥
...................................... कवि  हेमराज हंस             9575287490 ........................................................

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita हे महादोगला हे अकही अकहापन कै पूं...

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita हे महादोगला हे अकही अकहापन कै पूं...:  हे महादोगला हे अकही अकहापन कै पूंजी तुम। हमकरी चेरउरी चुगुलखोर तुम सुखी रहा य देश मां। तुम बइठे नक्‍कस काटा औ सब जन रहै कलेश मां॥ हे अक...

bagheli kavita हे महादोगला हे अकही अकहापन कै पूंजी तुम।

 हे महादोगला हे अकही अकहापन कै पूंजी तुम।


हमकरी चेरउरी चुगुलखोर तुम सुखी रहा य देश मां।
तुम बइठे नक्‍कस काटा औ सब जन रहै कलेश मां॥
हे अकरमंन्‍न हे कामचोर सब कांपै तोहरे दांव से।
कड़ी मसक्‍कत के करता तक कांपै तोहरे नाव से॥
तुमसे सब है कार बार जस धरा धरी ही ‘शेष'मां।हे चापलूस चउगिरदा हेन तोहरै तोहार ता धाक हिबै।
औ तोहरेन चमचागीरी से हमरे नेतन कै नाक हिबै॥
तुम कलजुग के देउता आह्‌या अब माहिल के भेष मां।
हम...............
हे महादोगला हे अकही अकहापन कै पूंजी तुम।
बड़ा मजा पउत्‍या है जब आने कै करा नमूंजी तुम॥
गद्‌गद्‌ होय तोहार आतमा जब कोउ परै कलेश मां॥
हम................
हे मनगवां के कूकुर तुम चारिव कइती छुछुआत फिरा।
मुंह देखी मां म्‍यांउॅ म्‍यांउॅ औ पीठ पीछ गुर्रात फिरा॥
सगले हार तोहार धाक ही देस हो य परदेस मां।
हम.................
केतनव होय मिठास चाह छिन भर मां माहुर घोर द्‌या।
तुम भाई हितुआ नात परोसी का आपुस मां फोर द्‌या॥
तोहरे भिरूहाये मां पति.पत्‍नी तक चढ़िगे केस मां॥
हम...................
हे मंथरा के भाई तुम जय हो हे नारद के नाती।
नाईदुआ करत बागा बेटिकस डांक कै तुम पाती॥
हे रामराज्‍य के धोबी तुम घुन लाग्‍या अबधनरेश मां।
हम करी चेरउरी चुगुलखोर तुम सुखी रहा य देश मां॥
........................................................................................

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bagheli kavita मिलब सांझ के hemraj hans

बघेली कविता 

हम सरबरिया बांम्‍हन आह्‌यन
मिलब सांझ के हउली मां।
मरजादा औ धरम क ब्‍वारब,
नदिया नरबा बउली मां॥
होन मेल जोल भाईचारा कै,
साक्षात्‌ हिबै तस्‍वीर।
मंदिर मसजिद असम समस्‍या,
नहि आय झंझटिया कश्‍मीर॥
अंगड़ा पिछड़ा आरक्षण का,
लफड़ा बाला नहि आय भेद।
जात पांत औ छुआछूत के,
उंचनीच का नहि आय खेद॥
समता मिलै हंसत बोलत होन,
पैग भजिया लपकउरी मां।
हम...................................
एक भाव एक नाव मां बइठे,
मिलिहैं राजा रंक औ फक्‍कड़।
बड़े बड़े परदूषन प्रेमी,मिलिहैं,
सुलगाये धुंआ औ धक्‍कड़॥
रक्‍शा बाले नक्‍शा बाले,
शिक्षा स्‍वास्‍थ सुरक्षा बाले।
बने पुजारी सरस्‍वती के,
अद्यी पउवा बोतल घाले॥
बड़े शान से भांसन झरिहैं,
मद्य निषेध के रइली मां।
हम...................................
भले भभिस्‍स देस का जाथै,
बस्‍ता लादे कोसन दूरी।
भला होय सरकार का भाई,
घर नेरे ब्‍यांचै अंगूरी॥
पै कुछ जने खूब हें झरहा,
देखि न सकैं हमार सुखउटा।
अंगूरी का डींठ न लागी,
शासन नेरे हय कजरउटा॥
ईं समाज सेवक पगलान हें,
आचरन चरित्र पिछउरी मां।
हम......................................
भले दये अदहन चुल्‍हबा मा,
ताकै टोरबन कै महतारी।
औ हमार य अमल सोबाबै,
राति के लड़िका बिना बिआरी॥
हमही चाही रोज सांझ के,
मुर्ग मुसल्‍लम पउआ अद्यी।
फेर नंगदांय द्‌याखा हमार,
कइ देयी ढ़ील कनून कै बद्यी॥
वा बिन सून ही नेतागीरी,
जस खरिहान कुरइली मां।
हम...........................................
महुआ रानी पानी दै दै,
हमही बनै दइस लतखोर।
कउली अपने से दूगुन का,
भले हबै अंतस कमजोर॥
बीस बेमारी चढ़ी ही तन मां,
तउ नही य छूटै ट्‌यांव।
मदिरा माने माहुर भाई,
डिग्‍गी पीटा गांॅव गांॅव॥
नही पी जइ य समाज का,
बगाइ कउरी कउरी मां।
चला करी प्रन अबहिन भाई,
कोउ जाय न हउली मां॥
@हेमराज हंस  9575287490 

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita धर बरिगा ता बरिगा,हम दमकल देख्‍यान...

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita धर बरिगा ता बरिगा,हम दमकल देख्‍यान...: बघेली मुक्तक  पियासा परा हम, हेन नल क देख्‍यान। उूसर मां बाइत करत,हल क देख्‍यान ॥ आगी लगाय के अब,कहथें फलाने,, धर बरिगा ता बरिगा,हम दमक...

bagheli kavita धर बरिगा ता बरिगा,हम दमकल देख्‍यान॥

बघेली मुक्तक 

पियासा परा हम, हेन नल क देख्‍यान।
उूसर मां बाइत करत,हल क देख्‍यान ॥
आगी लगाय के अब,कहथें फलाने,,
धर बरिगा ता बरिगा,हम दमकल देख्‍यान॥
...............  .......................................
नल तरंग बजाउथें,बजबइया झांझ के।
देश भक्‍ति चढाथी,फलाने का सांझ॥
उनहीं ईमानदार कै,उपाधि दीन गै,
जे आंधर बरदा बेंच दइन काजर आंज के॥
...........................................................
शांती क पाठ लड.इया से पूंछत्‍या है ।
शनीचर क पता अढ़इया से पूंछत्‍या है॥
भोपाल से चला औ,चउपाल मां हेरायगा,
विकास क पता मडइया से पुंछत्‍या है॥

करियारी अस पगहा नही भा ।
फउज मां भरती रोगहा नही भा॥
उनसे जाके कहिद्‌या भूंभर न करैं,
समय काहू का सगहा नही भा॥
.........................................................
भइस अबै बिआन नही,उंइ सोठ खरीदाथें।
लिपिस्‍टिक लगामै क,ओठ खरीदाथें॥
दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र मां,
उंइ एकठे बोतल से, वोट खरीदाथें॥
.......................................................
आपन सहज बघेली आय।
गांव के क्‍वारा कै खेली आय॥
विंध्‍य हबै जेखर अहिबात,
ऋषि अगस्‍त कै चेली आय॥
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फलाने कै भंइसी निकहा पल्‍हाथी।
लगथै आँगनवाड़ी कै दरिया वा खाथी॥
गभुआर बहुरिगें धांधर खलाये,
सरकारी योजना ठाढे बिदुराथी॥
.  ........................................
पढ़इया स्‍कूल छूरा लइके अउथें।
हम उनसे पूंच्‍छ्‌यन त कारन बताउथें॥
पढ़ाई के साथ साथ सुरक्षव त जरुरी ही,
आज काल्‍ह गुरुजी चउम्‍ही से पढ़ाउथें॥
..............  ..................................
हम जेही मांन्‍यान कि बहुतै बिजार है।
लागथै भाई वा बरदा गरियार है ॥
जब उनसे पूंछ्‌यन त कहाथे फलाने,
दहकी त दहकी नहि दल का सिगार है॥
..............  ...................................
फूल हमही त जरबा जनाथै।
बिन जंगला केर अरबा जनाथै॥
बहुराष्‍ट्‌ीय कंम्‍पनी क पानी भरा है,
औ देशी मांटी क तलबा जनाथै॥
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घिनहौ क नागा नही कही,
येही बड़प्‍पन मान कहा ।
फलाने कहाथें तुम हमी
महान कहा ॥
जेही बंदेमतरं गामैं मां लाज लागाथी,
उंइ कहा थें हमूं का ,
भारत कै संतान कहा ॥
...............  ...................................
हम दयन नये साल कै बधाई।
फलाने कहिन तोहई लाज नही आई॥
पांव हें जोधइया मां हांथ मां परमानु बम
पै पेट मां बाजाथी भूंख कै शहनाई॥
...............  .....................................
तुहूं अपने हांथ कै चिन्‍हारी देख ल्‍या।
भाई चारा काटैं बाली आरी देख ल्‍या॥
नीक काम करिहा ता वा खूंन मां रही,
गिलहरी के तन केर धारी देख ल्‍या॥
.............  .......................................
हमरेव गांॅव मां हरिश्‍चंद हें।
दिल्‍ली तक उनखर संबंध हें॥
पुलिसवाले गें लेंय परिक्षा,
आज काल्‍ह उंइ जेल मां बन्‍द हें॥
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उंइ कहा थें हाल चाल ठीक ठाक है।
जब से भगा परोसी तब से फरांक है॥
अब रोज खुई कराथें पट्‌टीदार से,
औ कहाथें हमरिव कि निकही धाक है॥
...............  ...................................
हम फुर कही थें ता कान उनखर बहाथै।
पता नही तन मां धौं कउन रोग रहाथै॥
तन से हें बुद्ध औै मन से बहेलिया,
कोहबर कै पीरा य लोकतंत्र सहाथै॥
............... ...................................
चेतना के देंह का उंइ झुन्‍न न करै।
हांथ जरै जेमा अइसा पुन्‍न न करै॥
इन्‍द्र कै बस्‍यार ही घर के नगीच मां,
‘गउतम'से जाके कहि द्‌या उच्‍छिन्‍न न करैं॥
...............  ........................................
बलफ फियुज होइगा झालर पकड.के।
उंइ हाल चाल पूंछाथें कालर पकड.के॥
सुदामा के चाउर का उंइ का जनैं,
जे बचपन से खेलिन ही डालर पकड. के॥
.................  .......................................
उबड़ खाबड़ अस चरित्र का
सभ्‍भ नीक बन जांय द्‌या।
औ कलिंग के छाती मां
करूणा कै लीख बन जांय द्‌या।
ओउं सीता मइया का
पलिहैंअपनें आश्रम मां,
पहिले हमरे ‘रत्‍नाकर'का
बालमीक बन जांय द्‌या॥
...............  .......................................
उनखेे कइ शरद्‌‌ अस   पूनू
हमरे कइ्र्र अमउसा है।
रदगदग द्‌यांह फलाने कै,
हमरे तन मां खउसा है॥
उंइ गमला कै हरिअरी देख,
खेती कै गणित लगउथे,
काकू कहाथे चुप रहु दादू भउसा है॥
...............  ..............................................
हमरे ईर्मानदारी का रकवा रोज घटाथै।
सुन के समाचार कर्‌‌याजा फटाथैै॥
जब उनसे पूंछ्‌यन त कहाथें फलाने,
चरित्र का प्र्र्रमान पत्र थाने मां बठाथै॥
..................  ...........................................
बड़े ललत्‍ता हया फलाने।
ताश के पत्‍ता हया फलाने॥
हम तोहइ थान मन्‍यान तै,
पै तुम लत्‍ता हया फलाने॥
................ ........................................
मरजादा का उंइ दंड कहा थें।
बंदेमातरं का पखंड कहा थें॥
रोज महतारी जेही ढाढस बधाउथी
उंइ बेरोजगार का बायबंड कहा थें॥
अब सेंतै लागै मांख फलाने ।
हा तुमहिन सबसे बांख फलाने॥
तुहिन लगाये रह्‌या अदहरा
तुहिन उचाबा राख फलाने॥
...........................................
आज काल्‍ह उंइ जादा दुखी हें।
लागथै उनखर परोसी सुखी हें॥
बड़े शीलवान उपरंगी जनाथें,
पै भितरै भीतर ज्‍वाला मुखी हें॥
...............................................
खूब सुन्‍यन हम भाषन बांझ।
आपन   दोउ  कान मांज॥
अउर बजायन बल भर तारी,
न उनही शरम न हमहीं लाज॥
.....................................................
अभुआंय लगेहें परेत पुन देवार मां।
शहरन मां गांवन मां घर घर दुआर मां॥
कहिन सेंतै भगीरथ तपिस्‍या करिन तै,
हम गंगा लै आनित बइठ के नेबार मां॥
................................................
न पाक के अतंकी चालन से ड्‌यर लगै।
देश का देशी दलालन से ड्‌्रयर लगै॥
जे लुकाये बइठ अपने घर मां मगर मच्‍छ,
उंइ अगम दहार अस तालान से ड्‌यर लगै॥
...........................................................
काल्‍ह बतामैं गंगा भट्‌ट।
मचा सांझ के लठमलठ्‌ठ॥
हम होन गयन करैं समझउता,
हमरेन लगिगा हरिजन एक्‍ट॥
......................................................
फसल हुंअय होथी जहां सींच होथै।
कमल हुंअय खिली जहां कीच होथै॥
उनसे कहि द्‌या जमान सम्‍हार के बोलै,
मनई जात से नही बात से नीच होथै॥
........................................................
अपना कइती चकाचक्‍क है।
औ हमरे कइती कुतक्‍कहै॥
अब वा कबहूं ठाढ न होइ
जे नजरन से गिरा भक्‍क है॥
.....................................................
व्‍यापार उइ कराथें त वहौ किस्‍त मां।
तकरार उंइ कराथे त वहौ किस्‍त मां॥
जीवन मां अर्थशास्‍त्र का येतू असर परा
प्‍यार उंइ कराथें त वहौ किस्‍त मां॥
.............................................................
हम अपने संकल्‍प से नट नही सकी।
अपने गाँव के मांटी से कट नही सकी॥
हम सुरिज आह्‌यन जोधइया न समझा
डूब ता जाब पै घट नही सकी॥
.........................................................
अमल्‍लक जनाथै उनखे चाल से।
हरिश्‍चंद का समझउता है नटवरलाल से॥
लवालब भरा है त आज उइ टर्राथें
सब गूलर भाग जइहै सूख ताल से॥
........................................................
खादी से कहां चूक भै चरखा बताउथें।
केतू भा अजोर य करखा बताउथें॥
जे रोज बोतल का पानी पियाथें
उइ अपने का नदियन का पुरखा बताउथें॥
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गूंज रही परभाती भइलो।
रोज बराथी बाती भइलो॥
दिन भर देंय अनूतर गारी
सांझ करै संझवाती भइलो॥
..........................................................
न अकरन न लिहाज फलाने।
कहां गिरी य गाज फलाने॥
कांधा से दुपट्‌टा हेरायगा
प्रगतिशील भै लाज फलाने॥
.....................................................
खूब सुन्‍यन हम भाषन बांझ।
आपन दोउ कान मांज॥
अउर बजायन बल भर तारी
न उनही शरम न हमही लाज॥
............................................................
न पाक के अतंकी चालन से डर लगै।
देस का गद्‌दार दलालन से डर लगै॥
जे लुकाये बइठ अपने पानी मां मगर
अइसा अगम दहार उंइ तालान से डर लगै॥
...........................................................
अब सेंतै लागै मांख फलाने।
हा तुमहिन सबसे बांख फलाने॥
तुहिन लगाये रह्‌या अदहरा
तुहिन उचाबा राख फलाने॥
............................................................
जउन उइ कहै वहै इतिहास आय।
फलाने कहाथें लगथै बदमाश आय॥
अरे दूध से भरा चह दारू से
संसद भवन त गिलास आय॥
..............................................................
अजल्‍याम कै कमाइ दवाई मां जाथी।
पउन ले अइहा सबाई मां जाथी॥
ईमानदारी के रोटी से संस्‍कार आउथें
बेइमानी कै झगड़ा लड़ाई मां जाथी।ं।
................................................................
काल्‍ह बतामै महतौ चुन्‍नी।
पसीझ पसीना कै पैसुन्‍नी॥
देंह देखाउत बागै मल्‍लिका
औ बदलाम भै बपुरी मुन्‍नी॥
..................................................
जे हांथ कटवाय लेय वोही ताज कहाथें।
जे ढोलकी फोर डारै वोही ओस्‍ताज कहाथे॥
झूरै न होय आपन भारत य  महान्‌ है
हेन पक्‍के जुआरी का धरम राज कहाथे॥
.........................................................
जे मरे के बाद बचै वहै सयान आय।
पेट पलै जेसे वहै जबर ज्ञान आय॥
जे अक्षर कविता कै बोली लगाउथे
वहै निकहा कवि औ बड़ा विद्वान आय॥
............................................................
हेन अतरे दुसरे विस्‍फोट ह्‌वाथै।
उइ कहाथें लोकतंत्र मोट ह्‌वाथै॥
नाक मां रूमाल धरे बांटथें मांवजा
उनखे निता मनई बस एक वोट ह्‌वाथै॥
................................................
अनमन अनमन सयान बइठें।
टनमन पीरा के बयान बइठें॥
दोउ जून जूड़े जिव रोटी नही मिलै
आंसू पी पी के अघान बइठें॥
.....................................................
आचरन रहाथें जब नेम धेम से।
तब जीवन चलाथै कुशल क्षेम से॥
उंइ रोज चार ठे कुलांचै सुनाउतींहै
को अम्‍मा अस परसाथै टठिया प्रेम से॥
...............................................
अंतस के पीरा का भुतही बताउथे।
पुजहाई टठिया का छुतही बताउथें॥
जे तरबा चाटाथे विदेसी परिपाटी के
उंइ अपने माटी का जुठही बताउथे॥
....................................................
केतू भइलो अबै समोखी।
कब तक होइ फुरा जमोखी॥
भारत माता सिसक रही ही
कब तक खुलिहैं आंॅखी ओखी॥
हेमराज हंस  9575287490 

bagheli kavita अचरा मां ममता धरे, नयनन धरे सनेह।

बघेली दोहा 

अचरा मां ममता धरे, नयनन धरे सनेह।
माँ शारद आशीश दे,शक्‍ति समावे देह॥
रहिमन पनही राखिये,बिन पनही सब सून।
दिल्‍ली से हैै गांव तक,पनही का कानून॥
राखी टठिया मां धरे,बहिनी तकै दुआर।
रक्‍छाबंधन के दिना, उइं पहुचे ससुरार ॥
गोबर से कंडा बनै, औ गोबरै सेे गउर।
आपन आपन मान है,अपने अपने ठउर॥
जेखे पीठे मां बजा,बारा का धरियार।
ओहिन की दारी सुरिज,कणै खूब अबियार॥
रजधानी मां गहग़़डडृव,खूब पटाखा फूट।
बपुरे हमरे गांव के,धरी बडेरी टूट॥
हमरे लोक के तंत्र का,देखा त अंधेर।
साहब आगू भींज बिलारी,चपरासी का शेर॥
गददारी उंइ करथें,खाय खाय के नून।
लोकतंत्र के देह मां,भ्रस्‍टाचार का खून॥
बदरी जब गामै लगी,बारिस वाले छंद।
बूंदन मां आमै लगा,दोहा अस आनंन्‍द॥
गदियन मां मेहदी रची,लगा महाउर पांव।
सावन मां गामय लगा,कजरी सगला गांव॥
अस कागद के फूल मां,गमकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलै,पंचवटी का संत।
जुगनू जब खेलिस जुआं,लगी जोधइया दांव।
पुनमांसी पकडै.लगी,अधियारे के पांव ॥
हेमराज हंस      मैहर  9575287490