देस के कूकुर तक सबा सेर होइगें।
जमाल घोटा तक हर्र बहेर होइगें । ।
उनखर हिआव औ उसासी ता देखा
गरीब खिआय गा धन्नासेठ कुबेर होइगें। ।
पूस माघ के ठाही मा गरमी कहां से आय गै।
कड़क मिजाजी मा नरमी कहां से आय गै।।
कमल के तलबा मा बेशरम के फूल,
सभ्भ घराना मा बेसरमी कहां से आय गै।।
**हेमराज हंस भेड़ा मइहर***
तुलसी के मानस कै सदा होई आरती
पै उइ न हेरे मिलिहैं कउनौ़ किताप मा।
बड़ा अमारक जाड़ है, ठठुराबय दहिजार।
साजन से सजनी कहिस, लगत्या आजु पिआर।
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आरव मिला चुनाव का, जुरय लाग सहदेब ।
राजनीत ख्यालैं लगी, मेर मेर फउरेब। ।