सोमवार, 7 नवंबर 2022

लक्ष्मण सिंह परिहार लगरगवाँ

 

।। रानी
बिटिया।।
मीठ मीठ बोलो करा,
तुम रानी बिटिया,
नीक नीक बोलो करा
तुम रानी बिटिया,
सीखा सत्कार करब,
तुम रानी बिटिया,
गरू गम्भीर रहा करा,
तुम रानी बिटिया,
करू न बोल्या कबहू,
तुम रानी बिटिया,
मर्यादा में रहना,
तुम रानी बिटिया,
कषटौ म जियै सिखा,
तुम रानी बिटिया,
दिया कस बाती,
जरके उजियार करा,
तुम रानी बिटिया,
भूख पियास सहना,
तुम रानी बिटिया,
जइहा पराए घर है,
तुम रानी बिटिया,
दुराभाव न लगाया,
तुम रानी बिटिया,
दुख बाट लिहा सबके
तुम रानी बिटिया,,
मीठ मीठ बोलो करा,
तुम रानी, बिटिया,,
।।बेटी दिवस पर।।यह रचना।।
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विधिना काहे रहे।
विकरूर हमसे।।
कउने जनम का।
बैर भजाइन हमसे।।
उकेरिन काहे नहीं।
प्रीत के लकीर।।
गदिया मा हमरे।
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हिरदय के ,
कोठरी मा,
भूली बिसरी,
सुधियन के गठरी,
सैइथी धरी है,
जेही कोऊ,
चोराए न पाई,
नजर कोऊ,
लगाए न पाई,
सुधियन के,
एतनिन तो,
थाती है ,
हमरे पास
जीवन भर के,,
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"दिन दहाड़े हत्या होइगै "
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फलन के राजा आमन कै,
हत्या होइगै।
दिन दहाड़े हमरे गांव मा।।
जन बच्चे से जानै सगला गांव।
सिपाही से लइके पुलिस कप्तान, तक जानै।
पटवारी से लइके कलेक्टर तक, जानै।।
सांसद ,विधायक औ पर्यावरण मंत्री, तक जानै।
वढ‌ई,ढीमर,कोरी,कोटवार,चमार, कुम्हार,जानै।।
लाला, लोधी,काछी, कुर्मी, पांडे,पाठक, ठाकुर परिहार जानै।
मुलुर-मुलूर सब दयाखत रहिगे मारत माछी ज‌इसै।।
हत्तियार घुरबा उपछत,हुमकत छाती आपन बागै।
इक्का-दुक्का है बोलै वाले दही जमाए मुह मा बाकी।
निवल कै चमड़ी सबल का उघ्यारत हमहू देखेन।
मरे गोरूअन कै खलरी कुच वधियन का उघ्चारत हमहू देखेन।।
करहत, टिकुरियात ,फरत, पकत ,आमन के बिरबन के।
बोकला उघेरे,कछियान बग‌इचा मां पहिल बेर हमहू देखेन।
आमा के उई हरियर सातौ बिरबा ठाडै सुखाएगे देखतै दयाखत।
रोबा ,रीहट,ग‌ऊ गोहार,चारौ क‌इत,बग‌इचा मा,मचगै।।
सात-सात ठो लहासै,जवान तडंगन कै ज‌इसै एक साथै।
लय आय के च‌उगाने मा रख दीन ग‌ई होय ज‌इसै।।
डेढ़ सौ से उपरै उमिर के बाबा विस‌इधा, मोट बोकला ,मामा मटहा काका।
सेंदुरी फूफू,सेंदुरा फूफा ,ठिरिया दाई, फफक-फफक के खूबै रोए मार के डिड्ड पुकार।
रोक न पाए आंसू उई बपुरे बहि चली नौ-नौ पाती के धार ।
आमन के हरियर बिरबन का सुनेन हम आपस मा बतात।।
सापिन का सुनेन ते अपने सपोलवन का खात।
ममता मर गै मन‌ई कै ल‌जवाय दिहिस व राक्षस कै जात।।
आमन के बिरबन का जे देत रहे बेटन का दर्जा।
पाल पोस के,करत रहे बड़ा कोख कस आपन लड़का।।
आमन के बिरबान का लगाए के बग‌इचा बिन लड़का बच्चा वाले।
वंस वाले फुरहुन फुर उई समाज मां होई जात रहे।।
धूम धाम से आमन के बग‌इचन का करै काज उई बरूआ।
मड़वा डारै मगरोहन गाडै ग‌उनहरै गांव की गीत मटमगरा के गामै।
गोडे से मूडे मर गहनन मां लदी हुलास भरी ।।
म‌ईके से आई चमाचम पहिरे ,
साड़ी बनारसी।
अन्तस के अपने लड़का कस महतारी कै वा भीखी डारै।।
जिऊ हरियर होई जाय पुत्रवती का सुख वा दिन वा पावै।
आमन के बग‌इचा के बीचों बीच लाट गडवामै।।
‌ मनै-मन लेडुआ फूटै महतौ दस गामन मा नेउता फेरबामै।
अमीर ,गनी गरीब भन्डारा मा ,
पंगत साथै पामै।।
ऊच नीच का ओछ बतकहाव दूरिव-दूरिव तक कहूं सन्घ न पावै।
नीच, निरद‌ई, ढोंगी , पाखंडी,अइसौ मन‌ई ,देखें सुने मा आमै।।
आमन के हरियर बिरबन के जे निरदैयता से बोकला निकरबामै।
सुखाय जाय का परखै कटबामै कै फेर जोड़ जुगत लगामैं।।
अधरियाय के करत हे जे अइसन पाप औ निखिद्द काम ।
देत हे जे अइसनन का मूंद के आंखी बढ़-चढ के साथ।।
एहिन तरन मन‌ईन का होई जात है।
देखत-देखत नाश।
देखत-देखत नाश.............
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जब बीर,
बजरंगी के,
डेहरी मा,
लगी होय,
लक्षमन जी,
के अरजी ,
अउर कोहू के,
डेहरी दुआरें,
काहे करै,
मरजी मरजी,
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का कवहू , हमहू का,
सुध करत होइहे,
दसहरा, देवारी,खजलइयां,
उनके सुध के विना,
एक साँस न लिहेन ,
हम अपने सुध मा।
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।। मदारी ।।
पहिने लहगिया ,
लाल लाल,
गरे मा पहिरे,
लाख केर कंठी,
करिहा मा बाधे,
घुन गुनिया,
मदारी का पछियान,
गइलै गइल चली जाए
बिचारी बंदरिया,
यहै वहै ,
उचटत,निहारत,
मदारी के सड़ाका के,
इसारे मा,
फिरगियाअस फिरय,
बिचारी बंदरिया,
नाच देखाबै,
मेर मेर के,
बन के सास अस,
शासन देखाबय,
नई नई पुतहिया के,
नखरा बघारय,
चेटक देखावत ,
जब जाय खिसियाय,
किटकिटाए दांत,
देखइयन का देखाबै,
बिचारी बंदरिया,
पेटे का अपने,
मूठी भर चना ,
मदारी के पूरे परिवार का,
पेट पालै बिचारी बंदरिया,
आज काल के लडकेहरी,
देखै टीबी मोबाइल,
पियै सिगरेट शराब,
सब होइगे बरबाद,
करै लूट पाट,
चोरी अपराध,
सीखै सबक लेय,
मदारी के या बंदरिया से,
दिहिस ही ईशुर दुइ ठो हांथ,
भाग्य के माथे बइठब छांड़ै,
करै कुछू काम धाम,
अकडब छांड़ै अइठब छांड़ै,
जिनगी का अपने,
अभारू न समझय,
मेहनत मशक्कत का,
मूल मंत्र अपनामै,
जीवन का अपने सार्थक बनामै ,
आपन पूर्वज बादर आय,
वहै थरम बंदरिया निभाबय ,
बादर का आपन गुरु बनाबा,
जिन्दगी का अपने सार्थक बनाबा 
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सुधि तुम्हार,
सुधि तुम्हार कांटा।
अस कसकय।
औ माहुर अस।
व्यवहार तुम्हार।
केसे कही बिपत।
या आपन।
जे रहे ओऊ होइगे बिरान।
दूध अस फाटिगा जिउ हमार।
माठाअस घोरि दिहा।
जउने दिन से।
पोटरा उधरे दिन गिनत।
मइरे कस माटी घुरेन।
छटपटात रहेन दिन रात।
पानी बिन मछरी अस।
फड़फड़ात रहेन।
पिंजरा कस पखेरू।
खरी दुपहरी भूभुर मा उपनहे।
बागत रहेन बाउर अस, बिल्लियान।
खपड़ा होइगय जीभ पियासन।
लउटेन लटपटियात।
तुम्हरे डेहरी से।
खटखटाय न सकेन संकरी।
घोराय न सकेन तुम्हीं।
कहा से कइसन प्रीत लगाएन।
रहत रहेन सुख चित्त।
का कहीं कइसन करी।
होइगा हाल बेहाल।
तुम्हरे अस निरमोही।
या तो तुमहिन हा।
या तो रही।
घनानंद के सुजान।*
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मन पपीहा होइगा हमार
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तुम्हरे दरस कै पियास।
पपीहा कै पियास होइगय।।
प्यासा हूं प्यासा हूं।
रट लगाबै दिन रात।।
मन एक हमार।
मन पपीहा होइगा हमार राम।।
चकोर कस निहारय।
उनही टक-टकी लगाए।।
जोधइयां का कर‌ अनुमान।
अखियां एक हमार।।
मन पपीहा होइगा हमार राम।
हुक हिरदय के हमरे।।
कोयलिया कै कूक होइगय।।
कुहु-कुहु कुहूकय ।
हिया एक हमार।।
मन पपीहा होइगा हमार राम।
हिरदय मा हमरे।।
हाथ अपना-आपन।
धर के तो देखी।।
हर धक-धक मा धडकय।
नाम एक तुम्हार।।
मन पपीहा होइगा हमार राम।
चित्त मा वसी है।।
जनमन से हमरे।
अनुहार एक तुम्हार।।
मन पपीहा होइगा हमार राम।
विथा अपने मन कय।।
हम भला केही सुनाई।
ल्याहै न लोग बांट।।
करिहें एक ज‌ग हसाई।
मन पपीहा होइगा हमार राम।।
मृग के कश्तूरी कस ।
आस -पास हमरे।।
महक-महक जाए।
सुधि एक तुम्हार।।
मन पपीहा होइगा हमार राम।
रहि-रहि उमडय-घुमडय।।
भुइ-भुइ ल्वारय बदरी।
नागिन के जीभ ज‌इसन।।
लप-लप चमकय विजुरी।
बरसय झमाझम पानी।।
छमा_छम नाचय मोर कस।
मन एक हमार।।
मन पपीहा होइगा हमार राम।
झकाझोर लगी है।।
सावन कय झड़ी।
जो बूंद पानी कय।।
उनके लिलारे से ढरकी।
पलकन से छटिलत।।
अधरन का जुठारत।
कंठ तक जो पहुंची।।
पानी कय वहै बूंद।
स्वाती कय बूंद होई ज‌ई।।
सीप मा पड़ी ता।
मोती बन ज‌ई।।
प‌पीहा के कंठ मा पड़ी ता।
जनमन कय पियस बुझज‌ई।।
कोहू के खूसी के ।
आंसू के बूंद बन ज‌ई।।
पानी के वहै बूंद अस।
होई जात जो।।
भाग एक हमार।
मन पपीहा होइगा हमार राम।।
मन पपीहा होइगा।
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उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार।
दिन चैन न परै
रात आबै न नीद ।
कल न परै देखे बिन एकौ घरी
हेरान हेरान अस लागै
कुछू कुछू हमार
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार
उनसें हैं नहीं आपन,
अइसन कउनौ नाता
पै उनके नेरे धरो हैं
गहन अस जिउ हमार,
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार
हमहीं जइसन लागत हैं
का उनहू का अइसै लागत हैं,
बिसर जात हैं पूछै-पूछै,
उनसे जीव हमार ,
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार,
एक तो फागुन,
दुसरे ऋतु राज बसत,
आमा के करौह अस,
गम गमकै जीउ हमार
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार
सरसौ फूली सगुन मा
बिछ गै जेजम अस नजर पसार,
पियर-पियर होइगा जीउ हमार ,
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिव हमार,
सुधि आबै उनकर जब
सुअन के बाइठे भुई
उडत मा बदरी जइसन,
हरिहर-हरिहर होइगा जीउ हमार
लउट पउट आबै जाय गुनगुनाय
काने मा भमरा सदेस देय,
प्रीत के तुम्हार,
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार,
बिसरायो बिसराये बिसरय नहीं,
निरखब भुकुरब बिदुरखी बतकहाव,
मीठ-मीठ तुम्हार ,
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार,
जादू टोना मन्तर मूठ अस,
जउने दिन से
दिहिन मार उई हमही
बइकल-बइकल अस
लागय जीउ हमार,
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार,
झाड़ फूक केसे करवाई,
जइ काउने देव देवाल,
केही सुमिरी केही भजी
कउन बदी हम बदना,
सउप दिहेन उनहिन के ऊपर,
जियामय मारय पानी से निकारी
मछरी अस चाहे तडफामै जिउ हमार,
नहा मा बास कस फास कसकवै करी,
तरबा मा करउदा कस काँटा लहकवै करी,
रहि-रहि माहुर अस बेउहार तुम्हार,
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार,
घिरिन रही सबदिन विपदन कै बदरी ,
आसू अइसन टपकय ,
जस चउमासे कस ओरिया,
लगै रहा असमंजस का झरियार
बधी-बधी भूखी गइया जइसन,
बमाय जिव हमार,
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार,
जब भर जियब जुड़े जिव जियै ना पाऊब,
हम या भितरपट जान लिहेन,
जिउ उनकर उन्है जुड़इ,
पिजरा मा पाले सुआ कस,
उड़ जइहे जिन्हा खुली केमरिया
प्राण पखेरू फड़ फड़ाय के हमार,
उहुन छुहुन रात दिन
होय जिउ हमार,
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चौगिरदा लगी है तमाम।
डोगरियन मा आगी पहडवन मा आगी।
लपर लपर आगी की लपटय।
नागिन के जीभ अस देखाय।
डोगरियन का रोबत डिडड पुकार।
पहडवन का देखेन मारत गोहार।
कइसन के अइसन मां बच पइहे।
भला जंगल पहार ।
पहिने बरदी जंगलिहा अफसर।
शहरन मा बागत देखाय।
लगी है गुलमेंहदी मा आगी।
कहि के फुरसत होइगे अधिकारी।
छुइलन के फूलन से लाल बिम्ब।
रहे हैं देखात जउन जंगल पहार।
बर रहे चड चड लफ्फा लए।
होइगय वा भुई अगरन से लाल लाल।
कहत रहे जे काल्ह तक।
हम करब संतरी गीरी।
बने मंत्री पाएंगे उई लप्प लप्प लाल बत्ती।
चउधरियाय गे उन्हीं देखाय न सुनाय।
दिन के धुधुआत सरग छुअत धुआं।
रात के अनाथ अस बरत पहार।
सत्तय मानब बरगे बैदन अस घर।
हमरे हररा अमरा बहेरा।
तेदु करउदा चार मुकुइया।
बचे है अब नाव चार का।
सेझा सरई बरसज धवई ।
ता रोउतय के आय।
सगमन का अनमन रोउनउध पाएन।
गुरजा का देखेन नौ नौ पाती के आंसू बहाए।
रोके हमहू न पायेन ।
तरइना हमरौ भरि आए।
निरदई पथरा पटिया के ठेकेदार।
सुममी लगाए के सुरंगै बारूदी लगाए के।
नददी नरबन केर छाती ओदार डारिन।
बचा नहीं बूदन बहामय का आंसू।
नददी नरबन के आखिन मा पानी।
बच पइहे अइसन मा कइसन के।
जड़ी बूटी बिरई चुनूगुन चिरई।
अधबरी लोखरी अधमरा खरहा।
होरा अस भुजरे तीतुर लावा।
घोपा अस बर गे भर भराय के।
मर गे मुरइला छटपटाय के।
बर के पट्ट पट्ट बहुरी अस फूटि गे।
भुई मा धरे लाबा तीतुर टिटिहिरी के अंडा।
जय बर के लखट गे।
खोखइलय मा अन गिनती।
टुइया भेलइया दुरलभ बच्चा करन सुआ के।
सरग छुअत या धुऔ ता।
विक्ख बइहर मा मिलाई।
रहि नहि गै एहिन से।
बइहर कहूं निखालिस।
अबहु तक मा न यदि चेतिस ।
या दुनिया केर मनई।
नहिआय वा दिन अब दूरी।
धुआं जब या दुनियौ केर देखई।
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अजब है गजब है ,
महिमा अपार महतारी,
मांघ पूस के किटकिटात ठाही,
जाग के बिताबै महतारी,
टहकय जो टूटी रात,
विहवल होई जाय महतारी,
ठंडियाय जाए जो सुत ,
घिस-घिस साम्हर कै सींघ,
अपने कुन-कुन दूध मा,
सुत का पियावै महतारी,
घोर -घोर हींग छाती पसुरी,
तरवा गदिया मा लगावै महतारी,
लपट से लपट परै सुत खातिर,
अगम दहार मा कूद परै महतारी,
अपने सुत के प्राणन खातिर,
नाग के फनफनात फन का ,
हाथे मा जरमेट लेय महतारी,
बाघिन के मुँह मा हाथ ड़ार ,
निकार लेय सुत का महतारी,
दिन का दिन रात का रात ,
कबहु नहीं समझिस महतारी,
प्राण का प्राण के साथ,
पीठ मा बाँध के ,
घोड़ा मा चड़ के,
स्वाभिमान के खातिर ,
छपा छप तलवार चलावै ,
दुश्मन के छक्के छुड़ाबै ,
बलिदान देय मा पाछे ,
कबहु नहीं रही महतारी,
ये मनुज नहीं थी , थी अवतारी,
माँ के बलिदानो की है,
अनगिनत अमर कहानी ------
अनगिनत अमर कहानी*
***************************
बैरी पेट के खातिर
---------------
एक हाँथे मा लए,
तुम्मी भर पानी,
अगउछी मा दूसरे हाँथे ,
नून मिरचा रोटी बाँधे,
काँधा मा टांगी टांगे,
मुडबोझिया,
लकड़ी काटै,
बैरी पेट के खातिर,
चल दिहिन गनी गरीब,
जंगल पहार,
मनसेरू चले मैहरारू चली ,
चले ओऊ बुढिया बुढउने,
जिनके नाव का रोमै,
चिटका कय लकड़ी,
हाँथे मा चाहत हीं जिनके,
पोथी-पाटी-बोडकी,
खेलै खाय के दिन,
ओऊ चल दिहिन,
काटै लकड़ी मुडबोझिया
लए हाँथे मा कुल्हरिया,
भटकय गभुआर ,
य ड़ोगरिया से व ड़ोगरिया,
नगर के पसचिम किला के उत्तर,
उतर के नदिया जंगल का जाय,
सरपट - पगड़ंड़ी ,
किला कइत देखत जात ,
ड़ेरात - सकपकात,
नहि आय ढगलग,
बिटिया मेहेरियन के,
देहे मा ओन्हा,
लए लकड़ी केर गरू,
मूड़े मा ब्वाझा ,
चलै सम्हारे दोऊ हाँथे ,
रहि जाए लजाय-लजाय,
भुई कइत निहारत हीठय ,
उनके या मजबूरी का निहारै,
कोऊ-कोऊ आँखी गड़ाए,
ठेठा परे काँधा मा धरे तऊ ,
लकड़ी का पहार अस गटठा,
मटकत चले आमय,
घर-घर प्वाछत ,
टपाटप टपकत पसीना ,
देखे से अइसन लागय ,
भूख का लिहिन होय जीत,
पहार मा आज जइसय ,
बारह चउदह साल के ,
एक दूबर पातर लड़केहरी केर,
बाँधी लकड़ी मुडबोझिया,
अन्दाजन हम,
उठायके एक रोज ,
रहि गएन थमथमाय के,
लाग भला लय आए ,
इ होइहे कइसन के,
कोसन दूर बजार तक ,
जंगल पहार से,
सांझ के लउटै करत,
वेचे का हिसाब-किताब,
चबन्नी का नून,
अठन्नी का मिरचा,
एक रूपिया कै हरदी,
ड़ेढ रूपिया कै तमाखू,
एक किलो आलू,
ड़ेढ किलो चाउर ,
सौ ग्राम शीशी मा,
कड़ू का लय तेल ,
महतारी का बन्ड़ी ,
मेहरारू का सेन्दुर टिकुली फीता,
बाप का दमा कै दवाई,
कुछु पिछली उधारी पटाइन,
लड़केहरिन का लिहिन बउरामै का,
रामदाना कै लुड़ुइया ,
सब लइके या लउट घरै,
जब वा बपुरा रमइयाँ ,
नाँच उठे घर के लड़केहरी,
खरिदररर के आए गए होय,
जइसय बजार सगली---------जइसय बजार सगली
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