जहां बिराजीं सारदा धन्न मइहर कै भूम। भक्तन का तांता लगा नाचत गाबत झूम।।
जहाँ बिराजीं शारदा धन्न मइहर का भाग।
बंदूखै तक बन गईं नल तरङ्ग का राग।।
माता जू किरपा किहिन बइठीं आके कंठ। तब कविता गामैं लगा हेमराज अस लंठ।।
जहां बिराजीं सारदा धन्न मइहर कै भूम। भक्तन का तांता लगा नाचत गाबत झूम।।
जहाँ बिराजीं शारदा धन्न मइहर का भाग।
बंदूखै तक बन गईं नल तरङ्ग का राग।।
माता जू किरपा किहिन बइठीं आके कंठ। तब कविता गामैं लगा हेमराज अस लंठ।।
काहू का ब्याज कै चिंता ही।
काहू का प्याज कै चिंता ही।।
करजा मा बूणे किसान का
।।र्याज कै चिंता ही
मघा नखत बदरी करय धरती का खुशहाल।
महतारी के हाथ कै जइसा परसी थाल।।
ऊपर दउअय रुठि गा औ नीचे दरबार।
धरती पुत्र किसान कै को अब सुनै गोहर। ।
धन्ना सेठन के निता गर्मी बरखा जाड़।
हमही एक मउसम हबै रोटी केर जुगाड़। ।
कउड़ा के नियरे संघर अपना सेकी देह।
हम धांधर के आग का लिखी उरेह उरेह।।
फसलन मा पाला लगा परी ठंड कै मार।
भितरघात मउसम करै खेत कहै आभार।।