उनखे नजर मा दुइ देस भक्त असली ।
एक ता अतंकबादी दूसर नक्कसली। ।
दूनव के मरे उंइ कपार धरे रोबा थें
जइसा उजरिगा होय खेत दुइ फसली।।
मघा नखत बदरी करय धरती का खुशहाल।
महतारी के हाथ कै जइसा परसी थाल।।
ऊपर दउअय रुठि गा औ नीचे दरबार।
धरती पुत्र किसान कै को अब सुनै गोहर। ।
धन्ना सेठन के निता गर्मी बरखा जाड़।
हमही एक मउसम हबै रोटी केर जुगाड़। ।
कउड़ा के नियरे संघर अपना सेकी देह।
हम धांधर के आग का लिखी उरेह उरेह।।
फसलन मा पाला लगा परी ठंड कै मार।
भितरघात मउसम करै खेत कहै आभार।।
अपना के तेल मा खरी अस जनाथी।
या सम्बेदना मसखरी अस जनाथी।।
जे डबल रोटी का कलेबा करा थें
उनही अगाकर जरी अस जना थी। ।