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मंगलवार, 13 सितंबर 2022
साहित्त फुर कहा थै
साहित्त फुर कहा थै लबरी नही कहै।
अपना के सत्ता अस जबरी नही कहै। ।
साहित्त के नस मा दुष्यंत केर मस है ,
साहित्त खउटही का कबरी नहीं कहै। ।
''राम'' के दरबार तक वाखर धाक ही ,
पै कबहू अपने मुंह से ''शबरी''नही कहै। ।
उई घायल से पूंछा थें कि कइसा लगा थै
अस्पताल पहुचामै का खबरी नहीं कहै। ।
रूपियन के निता कबहू कविता नही लिखै
हंस काही कोउ दुइ नम्बरी नहीं कहै। ।
हेमराज हंस --9575287490
जियसटी ही दादू
देस मा भूंख कै बस्ती ही दादू ।
तऊ रोटी भात मा जियसटी ही दादू ।।
महगाई बजिंदा खाये ले थी
अमरित पर्ब कै मस्ती ही दादू।।
कबाड़ी लइगा
कोउ मूसर कोउ कांड़ी लइगा।
कोउ टठिआ कोउ हांड़ी लइगा ।।
आसौ देबारी का जब सफाई भै
रसखान औ कबीर का कबाड़ी लइगा।।
घर घर मा फहरान तिरंगा,
घर घर मा फहरान तिरंगा, अमरित परब अजादी के।
होइगें पछत्तर बरिस देस के, सबका गरब अजादी के।।
बंदेमातरम राष्ट मंत्र से गूंज उचा धरती अकास
देशभक्ति के जनगनमन से अस्तुति करब अजादी के।।
मैथली जी
बांचिये बघेली के सिरमौर कवि श्री मैथली जी को
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जेखा दिखे से बोखारि चढइ तन ताप बढइ अउ आखि पिराई।
तेई करइ ससुरे अपने भइया भउजी कइ खूब बडाई।।
खरचा दस पाचि मिलइ कबहूं झट लेती हमइं अचरा गठिआई।
पउतीं न चारिउ आना तबउ कहइं भइया दिहिनि हइ राखी बधाई।।
: काल्ह तुहूं ता धांधे जइहा।
काल्ह तुहूं ता धांधे जइहा।
हीठत जइहा कांधे अइहा।।
ब्रिंदाबन मा रहय का है ता
तुमहूं राधे -- राधे गइहा । ।
भ्रसटन मा हम बिस्व गुरु हन
कबहुं ता आराधे जइहा। ।
छापा परा ता निकली गड्डी
अब ता भइलो बांधे जइहा। ।
पूर सभा गंधाय लाग ही
आखिर कब तक पादे जइहै। ।
हंस
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