बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : शौचालय बनवाबा घर मा शौचालय बनवाबा।: शौचालय बनवाबा शौचालय बनवाबा घर मा शौचालय बनवाबा। अपने घर के बड़मंशी का बहिरे न बगवाबा। । हमरी ...
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गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015
बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : तब जनता अपनी स्वयं प्रवक्ता होती है। ।
बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : तब जनता अपनी स्वयं प्रवक्ता होती है। ।: जब समाज में अराजकता होती है। तब जनता अपनी स्वयं प्रवक्ता होती है। । सिंघासन की बुनियादें हिलने लगती हैं पश्चाताप के बियावान में सत्त...
मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015
शौचालय बनवाबा घर मा शौचालय बनवाबा।
शौचालय बनवाबा
शौचालय बनवाबा भाई शौचालय बनवाबा।
अपने घर के बड़मंशी का बहिरे न बगवाबा। ।
हमरी बहिनी बिटिया बहुअय बपुरी जांय बगारे।
यहैं तकै झुकमुक ब्यारा का वहै उचै भिनसारे। ।
घर के मरजादा का भाई अब न यतर सताबा।
शौचालय बनवाबा भाई शौचालय बनवाबा। ।
फिरंय लुकाये लोटिया बपुरी मन मा डेरातीं आप।
निगडउरे मा बीछी चाबै चाह खाय ले सांप। ।
सबसे जादा चउमासे मा हो थें जिव के क्याबा।
शौचालय बनवाबा भाई शौचालय बनवाबा। ।
तजी सउख मोबाइल कै औ भले न देखी टीबी।
शौचालय बनवाई घर मा अपना हन बुधजीबी। ।
सरकारव कइ रही मदद औ कुछ अपने से लगाबा।
जब घर मा शौचालय होइ ता ही घर कै सज्जा।
तब न खेत बगारे बागी अपने घर कै लज्जा। ।
करा कटौती अउर खर्च कै निर्मल घर बनवाबा।
शौचालय बनवाबा भाई शौचालय बनवाबा। ।
शौचालय बनवाय घरे मा चला गंदगी पहटी।
पाई साँस जब शुद्ध हबा हरहजा रोग न लहटी। ।
चला 'हंस 'सब जन कोऊ मिल के य संकल्प उछाबा।
शौचालय बनवाबा घर मा शौचालय बनवाबा। ।
मंगलवार, 29 सितंबर 2015
लगा थै पुनि के चुनाव आमै बाला है। ।
आज काल्ह बिकत खूब माली का माला है।
'हंस 'कहा थें दार मा क़ुछ काला है। ।
उइ बड़े शील सोहबत से बोला थें
लगा थै पुनि के चुनाव आमै बाला है। ।
हेमराज हंस
रविवार, 27 सितंबर 2015
रविवार, 20 सितंबर 2015
तब जनता अपनी स्वयं प्रवक्ता होती है। ।
जब समाज में अराजकता होती है।
तब जनता अपनी स्वयं प्रवक्ता होती है। ।
सिंघासन की बुनियादें हिलने लगती हैं
पश्चाताप के बियावान में सत्ता सोती है। ।
हेमराज हंस
तब जनता अपनी स्वयं प्रवक्ता होती है। ।
सिंघासन की बुनियादें हिलने लगती हैं
पश्चाताप के बियावान में सत्ता सोती है। ।
हेमराज हंस
जनता मिल्लस प्रेम के सपना देखा थी। । हेमराज हंस
मुक्तक
जनता सब उनखर करदसना देखा थी।
आपन खोतड़ी उनखर गोफना देखा थी। ।
उइ नफरत के बीज भरे हें पेटे मा
जनता मिल्लस प्रेम के सपना देखा थी। ।
हेमराज हंस
गुरुवार, 17 सितंबर 2015
बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : गमकै बासमती अस चाउर। ।
बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : गमकै बासमती अस चाउर। ।: मुक्तक हाँथे मेहदी पाँव महाउर। गमकै बासमती अस चाउर। । ओंठे माही लगी लिपस्टिक नैना देख भें बाउर बाउर। । हेमराज हंस
गमकै बासमती अस चाउर। ।
मुक्तक
हाँथे मेहदी पाँव महाउर।
गमकै बासमती अस चाउर। ।
ओंठे माही लगी लिपस्टिक
नैना देख भें बाउर बाउर। ।
हेमराज हंस
बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : हे !गनपति मोरे देश मा दालिद बचै न शेष। ।
बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : हे !गनपति मोरे देश मा दालिद बचै न शेष। ।: दोहा सुक्ख संच औ शांति का होय अब सिरी गनेश। हे !गनपति मोरे देश मा दालिद बचै न शेष। । हेमराज हंस
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