रिम झिम -रिमझिम पानी बरखै , आबा है चउमास।
धरती ओड़िस हरिअर चुनरी, जस कबित्त अनुप्रास।।
कोउ रूँधै कोलिया बारी, धइ गुलमेंहदी जरिया।
कोउ छबाबै छान्ही छप्पर , कोउ बांधै बउछेरिया। ।
कुछ जन बइठ हें हाथ सकेले, अकरमन्न अजनास।
खेतन माही बोबी धान ता, लागंय सुआ चिरइया।
दिन भर बड़ा -बड़ा नरिआ थें , खेतबन केर तकाइया। ।
झुक मुक ब्यारा घर का बहुरैं, करे दइव से आस।
अब बढ़ान गरमी कै छुट्टी , लगै लगी इस्कूल।
बिद्या के मन्दिर मा अबतक, हिबै ब्यबस्था लूल।।
भारत के लाड़िल भभिस्स का, एकव नहीं सुपास।
करै पपीहा प्याऊं- प्याऊं , स्वाती केर बसेड़ी ।
जस तलाव के मेड़ मा अउलट बइठे होंय गजेड़ी। ।
अहुर बहुर के कारे बदरा, लागें चढ़य अकास।
नाचै बदरा देख - देख के देस का पंछी मोर।
औ किरबा उतराय लाग, जब देखिन कहूं अजोर। ।
अब गूलर के कंठ मा होइगा , पंचम सुर का बास।
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