गुरुवार, 4 जुलाई 2024

आबा है चउमास

रिम झिम -रिमझिम पानी बरखै , आबा है चउमास।
धरती ओड़िस हरिअर चुनरी, जस कबित्त अनुप्रास।

कोउ  रूँधै  कोलिया  बारी,  धइ  गुलमेंहदी  जरिया।
कोउ छबाबै  छान्ही छप्पर , कोउ  बांधै  बउछेरिया।  
कुछ जन बइठ हें हाथ सकेले, अकरमन्न अजनास। 

खेतन  माही  बोबी  धान  ता,  लागंय  सुआ  चिरइया।
दिन भर बड़ा -बड़ा नरिआ थें , खेतबन केर तकाइया। 
झुक मुक  ब्यारा  घर  का  बहुरैं,  करे  दइव  से आस। 

अब  बढ़ान  गरमी   कै  छुट्टी ,  लगै   लगी   इस्कूल। 
बिद्या  के  मन्दिर मा  अबतक,  हिबै  ब्यबस्था  लूल। 
भारत के लाड़िल भभिस्स का,  एकव  नहीं  सुपास। 

करै   पपीहा   प्याऊं-  प्याऊं , स्वाती   केर   बसेड़ी ।
जस  तलाव  के मेड़ मा अउलट  बइठे  होंय  गजेड़ी।  
अहुर  बहुर   के  कारे  बदरा,  लागें  चढ़य   अकास।  

नाचै  बदरा   देख  - देख  के  देस  का   पंछी  मोर। 
औ  किरबा उतराय लाग, जब देखिन कहूं अजोर। 
अब गूलर के कंठ मा होइगा , पंचम सुर का बास। 
    
 

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