बुधवार, 30 दिसंबर 2015

कोऊ लहुर बनै का तयार नहि आय। हेमराज हँस

कोऊ लहुर बनै का तयार नहि आय। 
चल चली हेन प्रेम कै बयार नहि आय। । 
उनखे घर मा संगमरमर जड़ा है 
मिर्रा के घर मा मयार नहि आय। । 
हेमराज हँस

सोमवार, 28 दिसंबर 2015

बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : बड़ा अमारक जाड़ है ठठुरा है परधान।

बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : बड़ा अमारक जाड़ है ठठुरा है परधान।: बघेली दोहा  बड़ा अमारक जाड़ है ठठुरा है परधान।  उइं बिदुराती हईं कह 'दुइ रूई 'का उपखान। ।  । । हेमराज हँस । । 

बड़ा अमारक जाड़ है ठठुरा है परधान।

बघेली दोहा 
बड़ा अमारक जाड़ है ठठुरा है परधान। 
उइं बिदुराती हईं कह 'दुइ रूई 'का उपखान।। 
। हेमराज हँस ।  

शनिवार, 19 दिसंबर 2015

बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli sahitya पहिले लोकतन्त्र का गुंडन से बचाबा...

बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli sahitya पहिले लोकतन्त्र का गुंडन से बचाबा...:            बघेली मुक्तक   पहिले लोकतन्त्र का गुंडन से बचाबा।  ओही माहुर भरे कुण्डन से बचाबा। ।  गुतका औ चुम्मा का खेल जनता देखा थी  देस...

bagheli sahitya पहिले लोकतन्त्र का गुंडन से बचाबा।

           बघेली मुक्तक 
 पहिले लोकतन्त्र का गुंडन से बचाबा। 
ओही माहुर भरे कुण्डन से बचाबा।। 
गुतका औ चुम्मा का खेल जनता देखा थी 
देस का पाखण्डी पण्डन से बचाबा। । 
हेमराज हँस    

मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा।

बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : bagheli kavita सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा।: बघेली  सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा।  सुन्दर कानी कबरी हिबै मोबाइल मा।  ।  क्याखर कासे प्यार की बातैं होती हैं  दबी मुदी औ तबरी हिबै  ...

bagheli kavita सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा।

बघेली 
सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा। 
सुन्दर कानी कबरी हिबै मोबाइल मा। । 

क्याखर कासे प्यार की बातैं होती हैं 
दबी मुदी औ तबरी हिबै  मोबाइल मा। । 

विस्वामित्र मिसकॉल देख बिदुराय लगें 
अहा !मेनका परी हिबै  मोबाइल मा। । 

नई सदी के हमूं पांच अपराधी हन 
जाति गीध कै मरी हिबै  मोबाइल मा। । 

कोउ हल्लो कहिस कि आँखी भींज गयीं 
कहू कै खुश खबरी हिबै  मोबाइल मा। । 

अब ता दण्डकवन से बातें होती हैं 
श्री राम कहिन कि शबरी हिबै  मोबाइल मा। । 

''हँस ''बइठ हें भेंड़ा भिण्ड बताउथें 
सरासरीहन लबरी हिबै मोबाइल मा। 
हेमराज हँस 

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

bagheli sahitya

उइ ठेगरी लगबा रहें मार मार के ख्वाँग। 
औ जनता बिदुराथी देखि देखि के स्वाँग। । 
हेमराज हंस 

रविवार, 13 दिसंबर 2015

बघेली कविता,

कहै बिटीबा  मोबाइल से बड़े उराव भरे। 
पापा आज मोर बसकट ही हरबी अया घरे। । 

बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : hemraj hans कुम्हार के माटी मा कांकर नही होय।

बघेली साहित्यbagheli sahitya हेमराज हंस : hemraj hans कुम्हार के माटी मा कांकर नही होय।: मुक्तक  कुम्हार के माटी मा कांकर नही होय।  जनता कुरसी कै चाकर नही होय।। उई बहुरूपियन का जाके बता द्या  समय के केमार मा सॉकर नही हो...