--------------------------------------------------------- ये क्या इससे और भी ब्यवस्था बेहतर चाहिये। देश को नेता नही अब तो मेहतर चाहिये। ।
जो उठा सके भ्रष्टाचार जैसी गन्दगी जनता के साथ चलने वाला सहचर चाहिये
------------------------------------------- कविता मेरी मानस पुत्री है मै इसे शब्दों से सजा कर समाज रूपी ससुराल के लिये विदा कर देता हूँ। 'केदारनाथ अग्रवाल ''