रविवार, 4 जनवरी 2015

नहीं बनाबै बार

   बघेली साहित्य 

चाहे हेन ज्याखर रहइ कुरसी औ दरबार। 
कउन गडारी गडराय नहीं बनाबै बार। । 

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

तुम हमार आँसू देखा हम तोर

तुम हमार आँसू देखा हम तोर बिदुरखी देखीथे। 
हाथे मा रिमोट लये हम आपन कुरकी देखीथे। ।
कोउ नहि आय दूध का धोबा राजनीत के धंधा मा 
साँझ सकारे चाय पिअत हम खबर कै सुरखी देखीथे। । 

                  दोहा 

राखी टठिआ  मा धरे बहिनी तकै दुआर।
रक्षा बंधन के दिना उई पहुंचे  ससुरार । । 


गुरुवार, 1 जनवरी 2015

हम  दयन   नये    साल  कै  बधाई। 
फलाने कहिन तोहई लाज नही आई। । 
पाँव हे मंगल मा हाथ मा परमाणु बम 
पेट मा बाजथी भूख कै शहनाई। । 

bagheli muktak: रात रात भर किहन तरोगा हम जेखे अगुवानी मा। बड़े सका...

bagheli muktak: रात रात भर किहन तरोगा हम जेखे अगुवानी मा। 
बड़े सका...
: रात रात भर किहन तरोगा हम जेखे अगुवानी मा।  बड़े सकारे मरे मिले उई एक चुल्लू भर पानी मा   ।।  खुब  पैलगी  होथी  जेखर  औ समाज मान हबै।  उनह...

अखिल भारतीय साहित्य परिषद || AKHIL BHARATIYA SAHITYA PARISHAD:

अखिल भारतीय साहित्य परिषद || AKHIL BHARATIYA SAHITYA PARISHAD:
रात रात भर किहन तरोगा हम जेखे अगुवानी मा। 
बड़े सकारे मरे मिले उई एक चुल्लू भर पानी मा   ।। 
खुब  पैलगी  होथी  जेखर  औ समाज मान हबै। 
उनही सॉझ के हम देखे हन गिरत भजत रसदानी  मा। ।