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रविवार, 2 नवंबर 2025

तुलसी गाथा

तुलसी गाथा 

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 सुवर्णकूटं रजताभिकूटं माणिक्यकूटं माणिरत्नकूटं।
अनेककूटं बहुवर्णकूटं श्री चित्रकूटं शरणम् प्रपद्ये ।।
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श्री गनेस जू सिद्ध करैं , मनसा मोर बिसेस।
जय हे माता सारदे, जय जय भारत देस।

माता तारा का नमन, पितु परमेस्वरदीन।
जिनखे आसिरबाद से ,लीन्हेव आंखर बीन ।

नमन है रामनरेस का, जे अच्छर आदित्य।
सब्द ब्रम्ह समरथ करैं, जानव नहीं साहित्त।

नमन गुरु रोहनीस्वर, चित्रकोट सुभ बास।
सौ सौ बन्दन चरण के, करै आपका दास।

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संबत दुइ हजार अस्सी दुइ। मइहर सारद कै पाबन भुइ।
भेड़ा गाँव है मोर निबासा। पाबन तुलसी चरित प्रकासा।
जब एकादसी श्री हरि जागे। मङ्गल सुदिन सब्द हम पागे।
हे बल बुधि बिदया के देउता। अंजनीलाल तुम्हार है नेउता।
मै सङ्कल्प किहव मन माही। अंजनि नंदन थाम्हाहु बाही।
पूर करा तुलसी कै गाथा। राम दूत हे हनुमत नाथा।
हे कामद नाथ मातु पैसुन्नी। मोर मती ही नाबालिक मुन्नी।
पूर करा तुम मन कै मनसा। जबर जग्ग अनमाधे हंसा।

कबि समाज का नमन है , देयी आसिरबाद।
यति गति लय तुक मात्रा, केर न करब बिबाद ।
---------राजापुर अध्याय -----------------------------

अपना का सादर प्रनाम, अब तुलसी जी कै सुभ कथा सुनी। भक्त सुमेरु सिरोमनि कै, बालापन जन्म कै ब्यथा सुनी।।
पाबन जमुना जी के तट मा, राजा पुर, पबरित धाम बसा। भारत के लोक प्रतिस्ठा का,मानो ब्रह्म अच्छर ग्राम बसा।।
वा पाबन माटी का प्रनाम, कबि का चंदन जहाँ कै रज है। हिन्दी कै जहां प्रतिस्ठा भै , अउ ग्राम गिरा का सूरज है।।

भारत का गउरव ग्रन्थ धरे, जह धरा गर्व से भरी हिबै । 
श्रीराम चरित मानस जू कै, हुंआ पाण्डु लिपि धरी हिबै।।  

जमुना अपने पाबन जल से, नित पाँय पखारै थाती  का। 
जहाँ राम बोला तुलसी  जन्में, राजा पुर के वा माटी  का।।  





भारत राजा राजबाड़न मा आपुस माही बटा रहा।
पै धरम देस जोरे रहिगा जइसा नरिअर मा जटा रहा।